Book Title: Vedang Prakash
Author(s): Dayanand Sarasvati Swami
Publisher: Dayanand Sarasvati Swami

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Page 47
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सामासिकः ॥ प्र और सम् से परे जानु शब्द को समासान्त जु भादेश हो । जैसे-प्रकृष्टे संसृष्टे च जानुनी अस्य प्रजुः । संजुः ॥ . अर्थादू विभाषा ॥ ५ । ४ । १३० । ऊर्ध्व शब्द से परे जानु शब्द को विकल्प करके झु आदेश हो । जैसे-जचे जानुनी अस्य । ऊर्ध्वजुः । ऊर्ध्वजानुः ॥ अधसोऽनङ् ॥ ५ । ४ । १३१ ॥ ऊधस् * शब्दान्त बहुव्रीहि को समासान्त अनङ आदेश हो । जैसे-कुण्डमिवोधोऽस्याः कुण्डोध्नी । घटोध्नी गौः ॥ वा-ऊधसोऽनडि स्त्रीग्रहणं कर्तव्यम् ।। इह माभूत् । महोधाः । पर्जन्यः । घटोध। धेनुकम् ॥ धनुषश्च ॥ ५ । ४ । १३२ ॥ धनुष् शब्दात बहुव्रीहि को अनङ् श्रादेश हो । जैसे शाई धनुरस्य शाहधन्वा । गाण्डीवधन्वा । पुष्पधन्वा । भधिज्यधन्या ।। वा संज्ञायाम् ।। ५ । ४ । १३३ ॥ संज्ञाविषय में धनुःशब्दान्त बहुव्रीहि को विकल्प करके अनङ् आदेश हो । जैसे2 शतधनुः । शतधन्वा । दृढधनुः । दृढधन्वा ॥ जायाया निङ् ॥ ५।४। १३४ ।। जायान्त बहुव्रीहि को समासान्त निङ् अादेश हो । युवतिर्जायाऽस्य । युवनानिः । वृद्धजानिः ॥ गन्धस्येदुत्पूतिसुसुरभिः ॥ ५ ॥ ४ । १३५ ॥ उत्, पूति, सु और सुरभि शब्दों से परे गन्ध शब्द को समासान्त इत् आदेश हो । * थनों के ऊपर जो दूध का स्थान अर्थात् एन है उस को ऊधम् कहते हैं .... , शार्ज श्रादि धनुष के विशेष नाम हैं । शतधनु आदि किसी पुरुष विशेष के नाम हैं ॥ For Private and Personal Use Only

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