Book Title: Vedang Prakash
Author(s): Dayanand Sarasvati Swami
Publisher: Dayanand Sarasvati Swami

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Page 24
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मामासिकः॥ . १७ Karwww सो तृतीया तत्पुरुष हो । जिस से अन्न का संस्कार किया जाय उस को व्यञ्जन कहते हैं । जैसे-दध्ना उपसिक्त ओदनः । दध्योदनः । क्षरीदनः ॥ - भक्ष्येण मिश्रीकरणम् ॥ २॥ १।५॥ मिश्रीकरण वाची तृतीयान्त सुबन्त भक्ष्य वाची सुबन्त के सङ्ग में वि• समास पावे सो तृतीया तत्पुरुष हो । जैसे-गुडेन मिश्रा धानाः । गुडधानाः । घृतेन मिश्रं शाकम् । घृतशाकम् ॥ भोजः सहोम्भस्तमसस्वतीयायाः॥६।३ । ३ ॥ जो तृतीयान्त ओजस्, अम्भस्, तमम् शब्दों से परे तृतीया का अलुक् हो । जो उत्तरपद परे हो तो । जैसे-ओजसा कृतम् । सहसा कृतम् । अम्भसा कृतम् । तमसा कृतम् ।। वा०-पुंसानुजो जनुषान्धो विकृताक्ष इतिचोपसङ्ख्यानम् ।। पुंसानुजः । जनुषान्धः । विकृताक्षः ।। मनसः सज्ञायाम् ॥६।३ | ४ ॥ जो सज्ञा विषय में उत्तरपद परे हो तो तृतीयान्त मनस् से परे तृतीया का मलुक् हो । जैसे—मनसादत्ता । मनसागुप्ता । मनसारामः ।। श्राज्ञायिनि च ॥६।३ । ५॥ जो आज्ञायिन् उत्तर पद परे हो तो तृतीयान्त मनस् से परे तृतीया का अलुक् हो । जैसे-मनसाज्ञायी ॥ श्रात्मनश्च पूरणे ॥ ६ । ३ । ६॥ आत्मनाषष्ठः । आत्मनापञ्चमः ॥ चतुर्थी तदर्थार्थयलिहितसुखरक्षितैः ॥ २ । १ । ३६ ॥ - जो तदर्थ अर्थात् विकृतिवाची चतुर्थ्यन्त सुबन्त, अर्थ बलि हित सुख और रक्षित सुबन्तों के साथ समास को प्राप्त हो सो चतुर्थी तत्पुरुष कहावे * जैसे-यूपाय दारु यूपदारु । कुण्डलाय हिरण्यम् कुण्डलहिरण्यम् । इह न भवति । रन्धनाय स्थाली । अवहननायोलखलमिति ॥ * यहां से चतुर्थी तत्पुरुष समास का प्रारम्भ समझना ।। For Private and Personal Use Only

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