Book Title: Vedang Prakash
Author(s): Dayanand Sarasvati Swami
Publisher: Dayanand Sarasvati Swami

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Page 17
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सामासिकः ॥ अच् प्रत्यन्ववपूर्वात् सामलोम्नः ।। ५ । ४ । ७५ ॥ जो प्रति, अनु और अव पूर्वक सामन् और लोमन् प्रातिपदिक हों तो उन से समासान्त अच् प्रत्यय हो । प्रतियामम् । अनुसागम् । अक्सामम् । प्रतिलोमम् अनुलोमम् । अवलोमम् ॥ अक्षणोऽदर्शनात् ।। ५ । ४ । ७६ ।। दर्शन भिन्न अर्थ में अति शब्द से समासान्त अच् प्रत्यय हो । जैसे-पुष्कराक्षम् । उदुम्बराक्षः । अदर्शनादिति किम् । ब्राह्मणाक्षि ॥ ब्रह्महस्तिभ्यां वर्चसः ॥ ५ । ४ । ७८ ।। ब्रह्मन् और हस्तिन् शब्द से परे जो वर्चस् उस से समासान्त अच् प्रत्यय हो । जैसे-ब्रह्मणो वर्चः । ब्रह्मवर्चसम् । हस्तिनो वर्चः । हस्तिवर्चसम् ॥ वा० --पल्यराजभ्याञ्चेति वक्तव्यम् ।। पल्लयवर्चसम् । राजवर्चसम् ।। अवसमन्धेभ्यस्तमसः ॥ ५ । ४ । ७६ ।। अव, सम् और अन्ध शब्द से परे जो तमस् उस से समासान्त अच् प्रत्यय हो । जैसे-अवगतं नाम प्राप्तं तमः । अवतमसम् । सम्यक्तमः । सन्तमसम् । अन्धन्तमः । अन्धतमसम् । श्वमो वमीयः श्रेयसः ।। ५ । ४।८ ।। जो श्वस् शब्द से परे वसीयस् और श्रेयस् शब्द हों तो उन में समासान्त अच् प्रत्यय हो । श्वोवसीयसम् । श्वःश्रेयसम् ॥ अन्ववतप्ताद्रहसः ॥ ५। ४ । ८१ ॥ अनुरहसम् । अवरहसम् । तप्तरहसम् ॥ ' प्रतरुरसः सप्तमीस्थात् ।। ५ । ५। ८२ ॥ जो प्रति से परे सप्तमीस्थ उरस् उस से समासान्त अच् प्रत्यय हो, जैसे-उरसि प्रति । प्रत्युरसम् । सप्तमीस्थादिति किम् । मातगतमुरः । प्रत्युरः ॥ For Private and Personal Use Only

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