Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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समुद्रपालीय - चम्पा में संवर्द्धन 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 धूयरं - कन्या को, ससत्तं - गर्भवती को, पइगिज्झ - लेकर, सदेसं - स्वदेश को, अह - अब, पत्थिओ - प्रस्थान किया। . भावार्थ - पिहुंड नगर में व्यापार करते हुए उस पालित श्रावक को किसी व्यापारी ने अपनी कन्या दे दी अर्थात् पालित श्रावक के गुणों से आकृष्ट हो कर अपनी कन्या का विवाह उसके साथ कर दिया। कुछ समय पश्चात् वह गर्भवती हुई। इधर पालित श्रावक के व्यापार का कार्य पूरा हो गया तब वह अपनी उस गर्भवती स्त्री को साथ लेकर अपने देश के लिए रवाना
हुआ।
समुद्रपाल का जन्म ..अह पालियस्स घरणी, समुद्दम्मि पसवइ।
अह दारए तहिं जाए, समुद्दपालित्ति णामए॥४॥
कठिन शब्दार्थ - पालियस्स - पालित श्रावक की, घरणी - गृहिणी, समुद्दम्मि - समुद्र में, पसवइ - जन्म दिया, दारए - बालक, तहिं - वहां, जाए - जन्म हुआ, समुद्दपाल इत्ति - समुद्रपाल, णामए - नाम।
भावार्थ - समुद्र में यात्रा करते हुए उस पालित श्रावक की गृहिणी - स्त्री के समुद्र में प्रसव हुआ। समुद्र में बालक का जन्म हुआ इसलिए उसका नाम 'समुद्रपाल' रखा गया।
विवेचन -' पालित की पत्नी ने समुद्र में ही पुत्र को जन्म दिया अतः बालक का गुणनिष्पन्न नाम 'समुद्रपाल' रखा गया।
. चम्पा में संवर्द्धन खेमेण आगए चंपं, सावए वाणिए घरं। संवड्डइ घरे तस्स, दारए से सुहोइए॥५॥
कठिन शब्दार्थ - खेमेण - क्षेमकुशल पूर्वक, आगए - आ गया, घरं - घर को, संवहइ - बढ़ने लगा, सुहोइए - सुखोचित। . भावार्थ - वह वणिक श्रावक क्षेम कुशल पूर्वक चम्पा नगरी में अपने घर आ गया और सुखोचित - सुख के साथ वह बालक उस पालित श्रावक के घर में बढ़ने लगा।
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