Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri

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Page 12
________________ उपयोगी परामर्श, बहुमूल्य सलाह, एवं सबसे अधिक प्रकाशन कार्यमें विशेष दिलचस्पीके कारण ही हम इस कार्यमें आगे बढ़ रहे हैं, यह लिखनेमें संकोच नहीं होता है। इस खंडका समर्पण प्रकृत खंड जैनसमाजके सर्वोपरि नेता, दानवीर, रायबहादुर, राज्यभूषण, रावराजा, रईसुदौला, जैनदिवाकर, श्रीमंत सर सेठ हुकुमचंदजीके करकमलोमें ग्रंथमालाके अध्यक्षजीके द्वारा समर्पित है । इसमें औचित्य है । श्रीमाननीय सरसेठ साहब ग्रंथमालाके संरक्षक हैं । उनकी संरक्षकतामें ही ग्रंथमालाने ऐसे महान् ग्रंथराजके प्रकाशनसदृश गुरुतरकार्यको करनेका साहस किया है। इसलिए उनको अपने कार्यको देखकर संतोष होगा। संतोषके स्थानमें ही समर्पण स्थान पाता है। ' दूसरी बात आज श्रीमंत सरसेठ साहबका समाजमें सर्वोपरि प्रभाव है । उन्होने आजतक धर्म व समाजकी सेवा जो की है एवं इस वयोवृद्ध अवस्थामें भी जो कर रहे हैं, वह महत्व पूर्ण और अनुपम है । तीर्थक्षेत्रोंपर आये हुए संकट, जंगमतीर्थ साधुसंतोंके प्रति आये हुए उपसर्ग, श्री सरसेठ साहबके द्वारा तत्परताके साथ किये गये प्रयत्नों द्वारा समय समयपर दूर हुए हैं । आपकी तीर्थभक्ति श्लाघनीय है। परमपूज्य आचार्य कुंथुसागर महाराजके चरणोंमें आपकी विशेष भक्ति थी। आपके द्वारा केवल समाज ही प्रभावित नहीं, राष्ट्र भी आप सदृश विभूतिको पाकर अपना गौरव समझता है । ब्रिटिश शासनकालमें भी आप राजसम्मानित थे । ग्वालियर, इंदौर, उदयपुर आदि देशी रियासतोमें आपको सम्मानपूर्ण स्थान था। अखिल भारतवर्षीय दि. जैन महासभाके आप संरक्षक हैं । महासभा और अखिल समाज आपकी धर्मप्रियतासे अत्यधिक प्रभावित हैं । आपकी व्यापारकुशलताका प्रभाव भारतमें ही नहीं, विदेशमें भी पर्याप्तरूपसे है। आपका अभ्युदय और वैभव दर्शनीय हैं । राजप्रासादतुल्य शीशमहल, देवभवनतुल्य इंद्रभवन, विचित्रवैभवसंपन्न रंगमहल, एवं सबसे अधिक पुण्यप्रभावको व्यक्त करनेवाले देवाधिदेव जिनेंद्रदेवका सुंदर मंदिर, आपके सातिशय पुण्यके प्रभावको व्यक्त करते हैं । आपने अभीतक करोडों रुपयोंकी संपत्तिका दान कर अपरिग्रहवादका आदर्श उपस्थित किया है । पूजन, स्वाध्याय, सत्पात्रदान, शास्त्रप्रवचन, तत्वचिंतन आदि पावन कार्योमें आप नियमितरूपसे दत्तचित्त रहते हैं । विशेष महत्वका विषय यह है कि संसारके अतुल भोगको भी पुण्यकर्मोदयजनित फल होनेके कारण आपने असार समझकर शेष जीवनको केवल आत्मसाधनामें लगानेका निश्चय किया है । यह आपकी आसन्नमव्यताको सूचित करता है । आप अब अपना जीवन मुख्यतः आत्महितके कार्यमें ही उपयोग कर रहे हैं। सदा शास्त्रस्वाध्याय, तत्वचर्चा, आत्मचिंतन एवं वैराग्यपरिणति ही आज आपके दैनिक कार्यक्रम हैं। ऐसी अवस्थामें आपने निश्चित ही दुर्लभ मनुष्यजीवनको सफल बनाया है । ऐसे भव्य पुरुष सचमुचमें धन्य हैं । ऐसे धन्य करकमलोंमें आज प्रकृत ग्रंथराजको समर्पण करनेका भाग्य संस्थाको मिल रहा है, इसका हमें हर्ष है।

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