Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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विशेषताएँ : जैनतत्त्वों के अद्वितीय संग्राहक, पाँच सौ ग्रन्थों के रचयिता तथा श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्र ग्रन्थ के प्रणेता पूर्वधर महर्षि वाचकप्रवर श्री उमास्वाति महाराज ऐसे युग में जन्मे जिस समय जैनशासन में संस्कृतज्ञ, समर्थ, दिग्गज विद्वानों की आवश्यकता थी । उनका जीवन अनेक विशेषतानों से परिपूर्ण था । उनका जन्म जैनजाति - जैनकुल में नहीं हुआ था, किन्तु विप्रकुल में हुआ था । विप्र-ब्राह्मण कुल में जन्म लेने के कारण प्रारम्भ से ही उन्हें संस्कृत भाषा का विशेष ज्ञान था । श्री जैनआगम- सिद्धान्त-शास्त्र का प्रतिनिधि रूप महान् ग्रन्थ श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्र उनके आगम सम्बन्धी तलस्पर्शी ज्ञान को प्रगट करता है; इतना ही नहीं, किन्तु भारतीय षट्दर्शनों के गम्भीर ज्ञानाध्ययन की सुन्दर सूचना देता है । उनके वाचक पद को देखकर श्री जैन श्वेताम्बर परम्परा उनको पूर्वविद् अर्थात् पूर्वों के ज्ञाता रूप में सम्मानित करती रही है तथा दिगम्बर परम्परा भी उनको श्रुतकेवली तुल्य सम्मान दे रही है । जैन साहित्य के इतिहास में आज भी जैनतत्त्वों के संग्राहक रूप में उनका नाम सुवर्णाक्षरों में प्रति है ।
कलिकालसर्वज्ञ प्राचार्य भगवन्त श्रीमद् विजय हेमचन्द्रसूरीश्वरजी म. सा. ने अपने 'श्री सिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासन' नामक महा व्याकरण ग्रन्थ में "उत्कृष्टे अनूपेन " सूत्र में "उपोमास्वाति संग्रहीतारः " कहकर अद्वितीय अञ्जलि समर्पित की है तथा अन्य बहुश्रुत और सर्वमान्य समर्थ प्राचार्य भगवन्त भी उमास्वाति प्राचार्य को वाचकमुख्य अथवा वाचकश्रेष्ठ कह कर स्वीकारते हैं ।
* श्री तत्त्वार्थाधिगमसूत्र की महत्ता *
जैनागम रहस्यवेत्ता पूर्वधर वाचकप्रवर श्री उमास्वाति महाराज ने अपने संयमजीवन के काल में पञ्चशत [५०० ] ग्रन्थों की अनुपम रचना की है । वर्त्तमान काल में इन पञ्चशत [५००] ग्रन्थों में से श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्र, प्रशमरतिप्रकरण, जम्बूद्वीपसमासप्रकरण, क्षेत्रसमास, श्रावकप्रज्ञप्ति तथा पूजाप्रकरण इतने ही ग्रन्थ उपलब्ध हैं ।
पूर्वधर - वाचकप्रवरश्री की अनमोल ग्रन्थराशिरूप विशाल श्राकाशमण्डल में चन्द्रमा की भाँति सुशोभित ऐसा सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थ यह 'श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्र' है । इसकी महत्ता इसके नाम से ही सुप्रसिद्ध है । पूर्वधर - वाचकप्रवर श्री उमास्वाति महाराज जैन श्रागम सिद्धान्तों के प्रखर विद्वान् और प्रकाण्ड ज्ञाता थे । इन्होंने अनेक शास्त्रों