Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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( १५ ) वाचनया च महावाचक-क्षमणमुण्डपादशिष्यस्य । शिष्येण वाचकाचार्य-मूलनाम्नः प्रथितकीर्तेः ॥२॥ न्यग्रोधिकाप्रसूतेन, विहरता पुरवरे कुसुमनाम्नि । कौभीषणिना स्वाति-तनयेन वात्सीसुतेनाय॑म् ॥ ३ ॥ अर्हद्वचनं सम्यग्गुरु-क्रमेणागतं समुपधार्य । दुखातं च दुरागम-विहतमति लोकमवलोक्य ॥ ४॥ इदमुच्चै गरवाचकेन, सत्त्वानुकम्पया दृब्धम् । तत्त्वार्थाधिगमाख्यं, स्पष्टमुमास्वातिना शास्त्रम् ॥ ५॥ यस्तत्त्वाधिगमाख्यं, ज्ञास्यति च करिष्यते च तथोक्तम् ।
सोऽव्याबाधसुखाख्यं, प्राप्स्यत्यचिरेण परमार्थम् ॥ ६ ॥
अर्थ-प्रकाशरूप है यश जिनका अर्थात् जिनकी कीत्ति जगद्विश्रुत है, ऐसे शिवश्री नामक वाचकमुख्य के प्रशिष्य और ग्यारह अङ्ग के ज्ञान को जानने वाले ऐसे श्री घोषनन्दि श्रमण के शिष्य तथा प्रसिद्ध है कीत्ति जिनकी और जो महावाचकक्षमाश्रमण श्री मुण्डपाद के शिष्य थे, उन श्री मूलनामक वाचकाचार्य के वाचना को अपेक्षा से शिष्य, कौभीषणी गोत्र में उत्पन्न हुए ऐसे स्वाति नाम के पिता के तथा वात्सी गोत्र वाली ऐसी (उमा नाम की) माता के पुत्र, न्यग्रोधिका गाँव में जन्म पाये हुए, कुसुमपुर (पाटलिपुत्र) नाम के श्रेष्ठ नगर में विचरते, उच्चनागर शाखा के वाचक श्री उमास्वाति ने गुरुपरम्परा से मिले हुए उत्तम अर्हद्वचनों को अच्छी तरह समझकर और यह देखकर कि यह विश्व-संसार मिथ्या आगमों के निमित्त से नष्ट-बुद्धि हो रहा है, इसलिये दुःखों से पीड़ित बना हुआ है, जीव-प्राणियों पर अनुकम्पा-दया करके इस आगम की रचना की है और इस शास्त्र को 'तत्त्वार्थाधिगम' नाम से स्पष्ट किया है । जो इस 'तत्त्वार्थाधिगम' को जानेगा और इसमें जैसा कहा गया है, तदनुसार प्रवर्तन करेगा, वह शीघ्र ही अव्याबाध सुख रूप परमार्थ को अर्थात् मोक्ष को प्राप्त करेगा ॥१-६॥
उक्त प्रशस्ति के अनुसार यह जाना जाता है कि शिवश्री वाचक के प्रशिष्य और घोषनन्दी श्रमण के शिष्य उच्चनागरी शाखा में हुए उमास्वाति वाचक ने 'तत्त्वार्थाधिगम' शास्त्र रचा। वे वाचनागुरु की अपेक्षा क्षमाश्रमण मुण्डपाद के प्रशिष्य और मूल नामक वाचकाचार्य के शिष्य थे। उनका जन्म न्यग्रोधिका में हुआ था। विहार करते-करते कुसुमपुर (पाटलिपुत्र-पटना) नाम के नगर में यह