Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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३।१४ • तृतीयोऽध्यायः
[ ४६ धातकीखण्ड में जितने क्षेत्र तथा पर्वत हैं, इतने ही क्षेत्र तथा पर्वत पुष्करवरद्वीप के अर्ध विभाग में हैं। इसलिए ही इस सूत्र में धातकीखण्ड के समान पुष्करवर द्वीप के अर्धविभाग में क्षेत्र और पर्वत जम्बूद्वीप से दुगुने हैं, ऐसा कहा है तथा धातकीखण्ड में क्षेत्र और पर्वत भी दो-दो हैं, यह बात भी विवेचनपूर्वक पूर्व में कह दी है। मेरु, वर्ष और वर्षधरों की संख्या और रचना जो धातकीखण्ड की कही है, वही पुष्करार्ध द्वीप की है।
एक जम्बूद्वीप, एक धातकीखण्ड और अर्द्ध पुष्करवरद्वीप, ये सब मिलकर अढाई द्वीप कहलाते हैं। इनमें कुल पाँच मेरु पर्वत, तीस वर्षधर पर्वत और पैंतीस वर्ष/क्षेत्र हैं। इनमें पाँच भरत. पाँच ऐरावत और पाँच महाविदेह मिलकर पन्द्रह कर्मभूमि कहलाती हैं। यहाँ पर असि, मसि
और कृषि इत्यादि कर्म का व्यापार होता है। या कर्मरूपी मल को सर्वथा दूर करके मुक्तिधाम प्राप्त करने के लिए यही योग्य भूमि है। क्योंकि अन्य स्थलों से मुक्ति का प्रभाव है, इसलिए कर्मों से सर्वथा मुक्त होने के लिए यही कर्मभूमि कहलाती है।
उक्त पैंतीस क्षेत्रों के पाँच महाविदेह क्षेत्रों में पाँच देवकुरु, पाँच उत्तरकुरु तथा एक सौ साठ (१६०) विजय हैं। छप्पन अन्तर्वीप केवल लवणसमुद्र में ही हैं। पुष्करवर द्वीप में मानुषोत्तर पर्वत है, जो पुष्करवर द्वीप के मध्य में किले की भाँति गोलाकार खड़ा है, तथा मनुष्यलोक को घेरे हुए है। जम्बूद्वीप, धातकीखण्ड और आधा पुष्करवर द्वीप ये ढाई द्वीप तथा लवणसमुद्र एवं कालोदधि समुद्र, बस इतना ही क्षेत्र यही 'मनुष्यलोक' कहलाता है।।
प्रश्न-उक्त क्षेत्र का नाम मनुष्यलोक और उक्त पर्वत का नाम मानुषोत्तर क्यों है ?
उत्तर-- इसका कारण यह है कि इससे आगे कोई भी मनुष्य गमन नहीं कर सकता। इस मानुषोत्तर पर्वत से आगे आज तक कोई भी मनुष्य न तो उत्पन्न हुआ है, न उत्पन्न होता है और न उत्पन्न होगा। इससे बाहर मनुष्य का जन्म-मरण नहीं होता। विद्यासम्पन्न मुनि या वैक्रिय लब्धिधारी मनुष्य ही ढाई द्वीप के बाहर जा सकते हैं, किन्तु उनका भी जन्म-मरण मानुषोत्तर पर्वत के भीतर अन्दर ही होता है। अतएव उक्त क्षेत्र का नाम मनुष्यलोक है तथा उक्त पर्वत का भी नाम मानुषोत्तर है। इस तरह मानुषोत्तर पर्वत के पहले ढाई द्वीप, दो समुद्र, पाँच मेरु, पैंतीस क्षेत्र, तीस वर्षधर पर्वत, पाँच देवकूरु, पाँच उत्तरकुरु, चक्रवत्तियों के एक सौ साठ विजयक्षेत्र, दो सौ पचपन जनपद और छप्पन अन्तर्वीप हैं। वे मनुष्य कौनसे हैं ? और कहाँ रहते हैं ? इसी को दिखाने के लिए आगे का सूत्र कहते हैं। (३-१३)
* मनुष्याणां स्थिति-क्षेत्रादयः * 卐 मूलसूत्रम्
प्राग मानुषोत्तरान्मनुष्याः ॥ ३-१४ ॥
* सुबोधिका टीका * उपर्युक्तमानुषोत्तरपर्वतपूर्वे प्राग् वा मानुषोत्तरात् पर्वतात् पञ्चत्रिंशत्सु क्षेत्रेषु सान्तरद्वीपेषु जन्मतो मनुष्याः उद्भवन्ति । संहरणविद्धियोगात् तु सर्वेष्वर्धतृतीयेषु