Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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श्री तत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
[ ४।२२
पुष्पप्रकीर्णक विमान नंदावर्त्त, स्वस्तिक इत्यादि विविध आकार वाले हैं । तथा श्रेणिगत विमानों के अन्तराल (बीच ) में प्राये हुए हैं। पूर्व दिशा बिना तीनों दिशाओं में ये विमान हैं ।
देवलोक के विमानों की कुल संख्या ८४६७०२३ है, जो श्री जीवविजयजी म. ने 'सकलतीर्थ' सूत्र में बतायी है ।
(१) पहले देवलोक में बत्तीस लाख विमान हैं ।
(२) दूसरे देवलोक में अट्ठाईस लाख विमान हैं । (३) तीसरे देवलोक में बारह लाख विमान हैं । (४) चौथे देवलोक में आठ लाख विमान हैं । (५) पाँचवें देवलोक में चार लाख विमान हैं । (६) छठे देवलोक में पचास हजार विमान हैं । (७) सातवें देवलोक में चालीस हजार विमान हैं । ( ८ ) आठवें देवलोक में छह हजार विमान हैं ।
( ६-१० ) नौवें और दसवें देवलोक में चार सौ विमान हैं ।
( ११-१२) ग्यारहवें तथा बारहवें देवलोक में तीन सौ विमान हैं ।
* अधोवर्ती तीन ग्रैवेयकों में एक सौ ग्यारह विमान हैं ।
* मध्यवर्त्ती तीन ग्रैवेयकों में एक सौ सात विमान हैं ।
* ऊर्ध्व के तीन ग्रैवेयकों में एक सौ विमान हैं ।
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पाँच अनुत्तर विमानों में एकैक विमान का ही परिग्रह है ।
( ४ ) अभिमान - ग्रहम् भाव को अभिमान कहते हैं। ऊपर-ऊपर के देवों में सुन्दर स्थान, देवों के देवियों का परिवार, सामर्थ्य, अवधिज्ञान, इन्द्रियशक्ति, विभूति, शब्दादि विषयों की समृद्धि इत्यादि अधिक अधिक होते हुए भी अभिमान अल्प- अल्प होता है । इससे ऊपर-ऊपर के देव कषायों की मन्दता होने से अधिक अधिक सुखी होते हैं ।
* देवों के विषय में विशेष माहिती *
इनके सम्बन्ध में अन्य भी पाँच बातें जानने योग्य हैं
( १ ) उश्वास - यानी श्वासोश्वास । जघन्यस्थिति वाले अर्थात् दस हजार वर्ष के श्रायुष्य वाले देव सात स्तोक परिमाणकाल में एक उश्वास - श्वासोश्वास लेते हैं । एक पल्योपम के आयुष्य वाले देव प्रत्येक मुहूर्त्त में एक श्वासोश्वास लेते हैं । एक सागरोपम आयुष्य वाले देव एक पक्ष में श्वासोश्वास लेते हैं । इस तरह जितने सागरोपम के आयुष्य हों उतने ही पक्ष में वे एक बार उश्वास- श्वासोश्वास लेते हैं ।