Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्र
[ ४।२६
* नवप्रकाराणां लोकान्तिकदेवानां नामानि *
卐 मूलसूत्रम्
सारस्वता-ऽऽदित्य-वह्नयरुण-गर्वतोयतुषिता-ऽव्याबाध-मरुतोऽरिष्टाश्च ॥ ४-२६ ॥
* सुबोधिका टीका *एते सारस्वतादयतेऽष्टविधाः देवाः ब्रह्मलोकस्य पूर्वोत्तरादिषु दिक्षु प्रदक्षिणं भवन्ति । यथा च तेऽनुक्रमतः सारस्वताः पूर्वोत्तरस्यां दिशि आदित्याः पूर्वस्यां दिशि एवमेव वह्निश्चाऽन्येऽपि देवाः ज्ञातव्याः । पूर्वमेवैतद् विशिष्टं यत्-अच्युतपर्यन्तकल्पदेवाः सम्यग्दृष्टिमिथ्यादृष्टी, ग्रेवेयकाऽनुत्तरवासिनः सर्वे देवाः सम्यग्दृष्टयः । ये च सम्यग्दृष्टयः सन्ति ते अधिकाऽधिकाः सप्त-अष्टभवान् च न्यूनतमद्वि-त्रिभवौ संसारे व्यतीत्यावश्यमेव निर्वाणं (मोक्षं) प्राप्नुवन्ति ।। ४-२६ ॥
* सूत्रार्थ-सारस्वत, आदित्य, वह्नि, अरुण, गर्दतोय, तुषित, अव्याबाध और मरुत्, ये आठों प्रकार के लोकान्तिक देव ब्रह्मलोक की पूर्वोत्तरादि दिशाओं में अनुक्रम से प्रदक्षिणा रूप में रहते हैं। अरिष्ट विमान पाठों विमानों के मध्यभाग में है ।। ४-२६ ॥
+ विवेचनामृत . प्रत्येक दिशा, विदिशा तथा मध्यभाग में एकैक जाति के निवासस्थान होने से इनके नौ भेद मानने में आये हैं। जैसे
पूर्व और उत्तर दिशा में अर्थात् ईशान कोण में सारस्वत, पूर्व दिशा में प्रादित्य, पूर्व और दक्षिण दिशा के मध्य में वह्नि, दक्षिण दिशा में अरुण, दक्षिण और पश्चिम दिशा के मध्य में गर्दतोय, पश्चिम दिशा में तुषित, पश्चिम तथा उत्तर दिशा के मध्य में अव्याबाध, एवं उत्तर दिशा के मध्य में मरुत् नामक लोकान्तिक देवों का निवासस्थान है। इन आठों के मध्य में अरिष्ट नामक एक विमान और है।
इस प्रकार विमान लोकान्तिकों के कुल नौ भेद हैं। जिनागम ठाणाङ्ग आदि शास्त्रों में भी लोकान्तिक देवों के नौ भेद ही कहे हैं ।
सारस्वत इत्यादि विमानों के नाम से ही उन देवों के नाम प्रसिद्ध हैं ।। ४-२६ ।।