Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
View full book text
________________
४१२९-३० ]
चतुर्थोऽध्यायः
[ ५६
* स्थिति-अधिकारः *
ॐ मूलसूत्रम्
स्थितिः॥४-२६॥
* सुबोधिका टीका अधिकारसूत्रोऽयम् । अर्थात् "वैमानिकानां" इति सूत्रेण वैमानिकदेवाधिकारपर्यन्तः ॥ ४-२६ ।।
सूत्रार्थ-यहाँ से स्थिति (आयुष्यकाल) के वर्णन का प्रकरण अधिकार शुरू हो रहा है ।। ४-२६ ॥
+ विवेचनामृत ॥ यह अधिकार सूत्र है। यहाँ से अब स्थिति (आयुष्य काल) का प्रकरण-अधिकार शुरू होता है। मनुष्य तथा तिर्यंचों की जघन्य स्थिति और उत्कृष्ट स्थिति का वर्णन आगे कह चुके हैं। इसलिए अब देव और नारकी के स्थिति-प्रायुष्य काल विषयक अधिकार कहते हैं ।। (४-२६)
* भवनपतिनिकायस्य उत्कृष्टस्थितिः*
卐 मूलसूत्रम्भवनेषु दक्षिणार्धाधिपतीनां पल्योपममध्यर्धम् ॥ ४-३० ॥
* सुबोधिका टीका * भवनवासिषु ये दक्षिणार्धाधिपतीनां पल्योपममध्यर्धं परास्थितिः । पूर्वोक्तभवनवासीनां द्वयोः यथोक्तयोः भवनवासीन्द्रयोः पूर्वो दक्षिणार्धाधिपतिः अन्यः उत्तरार्धाधिपतिः ।। ४-३० ।।
* सूत्रार्थ-भवनों में दक्षिणार्ध के अधिपति (इन्द्र) की उत्कृष्ट स्थिति डेढ़ पल्योपम की है ।। ४-३० ।।
ॐ विवेचनामृत ॥ भवनपति देवों के दस भेद हैं। उनके प्रत्येक के दो विभाग हैं
(१) दक्षिण दिशा तरफ के भवनों में रहने वाले तथा (२) उत्तर दिशा तरफ के भवनों में रहने वाले। इन दोनों के अधिपति इन्द्र भिन्न-भिन्न हैं। इसलिए दक्षिण दिशा तरफ रहने