Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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६६ ]
श्री तत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
[ ४३६
इन ग्रैवेयकों से ऊपर चारों विजयादि में एक सागरोपम की वृद्धि है । अर्थात् - ( १ ) विजय, (२) वैजयन्त, (३) जयन्त श्रौर ( ४ ) अपराजित, इन चारों में ही विमानवासी देवों की उत्कृष्ट स्थिति बत्तीस सागरोपम की है इसके ऊपर सर्वार्थसिद्ध विमान के देवों की स्थिति तैंतीस सागरोपम की है ।
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* देवलोक
[१] ग्रैवेयक
[२]
[३]
[४]
[५]
[६]
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मूलसूत्रम्
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आयुष्य
२३ सागरोपम
२४
२५
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देवलोक
[७] ग्रैवेयक
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0 विजयादि
चार
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सर्वार्थसिद्ध विमान
आयुष्य *
२६ सागरोपम
३०
३१
३२
३३
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विशेष - सर्वार्थसिद्ध विमान के देवों की स्थिति में एक विशेषता यह है कि - यहाँ पर जघन्य-मध्यम-उत्कृष्ट कोई भेद नहीं है । यहाँ उनके प्रायुष्य की स्थिति का प्रमाण तैंतीस सागरोपम । अर्थात् - सर्वार्थसिद्ध विमान में जितने भी देव उत्पन्न होते हैं, उन सभी की प्रायुष्य स्थिति तैंतीस सागरोपम की हुआ करती है । ( ४-३८ )
* जघन्यस्थितिः *
अपरा पत्योपममधिकं च ॥ ४-३६ ॥
* सुबोधिका टीका *
सम्प्रति जघन्य स्थिते: वर्णनं क्रियते । सौधर्मादिष्वेव यथाक्रममपरा स्थितिः पल्योपममधिकं च । अपरा जघन्या निकृष्टेति । परा प्रकृष्टा उत्कृष्टेत्यनर्थान्तरम् । तत्र सौधर्मेऽपरास्थितिः पल्योपममैशाने पल्योपममधिकच |
च एकार्थः । प्रकृष्टस्य उत्कृष्टस्य चापि एकार्थ भवति ।। ४-३६ ।।
अपरजघन्यस्य निकृष्टस्य
* सूत्रार्थ - सौधर्मकल्प में और ऐशानकल्प में जघन्य स्थिति का प्रमाण अनुक्रम
से एक पल्योपम तथा एक पल्योपम से कुछ अधिक है ।। ४-३६ ।।