Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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हिन्दी पद्यानुवाद ]
चतुर्थोऽध्यायः अच्युत कल्पे देवायु, एकवीश सागरोपम है। कल्पोपपन्न देवों का, उक्त ये जघन्यायुष्य है । अब कल्पातीत देवों का, जघन्य अायु क्रम से कहूँ । प्रथम ग्रंवेयक देवायु, बाईस सागरोपम कहूँ ।। ३३ ।। द्वितीय ग्रेवेयक देवायु, तेईस सागरोपम जानिये । तृतीय वेयक देवाय, चौबीस सागरोपम मानिये ।। चतुर्थ ग्रंवेयक देवायु, पच्चीस सागरोपम है। पंचम ग्रेवेयक देवायु, छब्बीस सागरोपम है ।। ३४ ।। षष्ठ ग्रेवेयक देवायु, सत्ताईस सागरोपम । सप्तम ग्रेवेयक देवायु, अट्ठाईस सागरोपम ।। अष्टम ग्रेवेयक देवायु, उनतीस सागरोपम कहा। नवम ग्रेवेयक देवायु, तीस सागरोपम जहाँ ॥ ३५ ।। विजयादि चार अनुत्तर, देवायु इकतीस सागरोपम है । सर्वार्थसिद्ध में देवायु, तैंतीस सागर पूर्ण है। इस तरह कल्पातीत के, देवायु जघन्य जानिये ।। अब नारक जीव का ही, जघन्य आयुष्य कहिये ।। ३६ ।।
* नारक जीव का जघन्य प्रायुष्य * 卐 मूलसूत्रम्
नारकाणां च द्वितीयादिषु ॥ ४-४३ ॥
दशवर्षसहस्राणिप्रथमायाम् ॥ ४-४४ ॥ * हिन्दी पद्यानुवाद
प्रथम नारकी जीवायु, जघन्य दस सहस्र वर्ष है। द्वितीय नारकी जीवायु, जघन्यक सागरोपम है ।। तृतीय नारकी जीवायु, तीन सागरोपम जानिये । चतुर्थ नारकी जीवायु, सप्त सागरोपम मानिये ।। ३७ ।। पंचम नारकी जीवायु, दस सागरोपम कहा । षष्ठ नारकी जीवायु, सत्तरह सागर का जहाँ ।। सप्तम नारकी जीवायु, बाईस सागरोपम है। इस तरह सात नारकी, जीवों का जघन्यायुष्य है ॥ ३८ ॥