Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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हिन्दी पद्यानुवाद ]
चतुर्थोऽध्यायः
च ।। ४-३८ ॥
* हिन्दी पद्यानुवाद
अधिके च ।। ४-३५ ।।
सप्त सानत्कुमारे ।। ४-३६ ।।
विशेष - त्रि-सप्त- दशैकादश-त्रयोदश-पञ्चदशभिरधिकानि च ॥। ४-३७ ।।
श्रारणाऽच्युतादूर्ध्वमेकैकेन
नवसु ग्रैवेयकेषु - विजयादिषु सर्वार्थसिद्धे
सौधर्मकल्पे इन्द्र का, दो सागरोपम आयु है । ईशानकल्पे इन्द्रायु, दो सागरोपमाधिक है ।। सनत्कुमार कल्पेन्द्रायु, सप्त सागरोपम है । माहेन्द्र कल्पे इन्द्रायु, सप्त सागरोपमाधिक है ।। २३ ।।
ब्रह्मलोक कल्पेन्द्रायुष, दश सागरोपम जानिये । लान्तक कल्पेन्द्रायु भी, चौदह सागरोपम मानिये ॥ महाशुक्र कल्पेन्द्रायुष, सप्तदश सागरोपम है । सहस्रार कल्पेन्द्रायु, अष्टादश सागरोपम है ।। २४ ।।
मानत कल्पेन्द्रायु है, उनविंश सागरोपम का । तथा प्राणत कल्पेन्द्रायु है विंश सागरोपम का ॥ आरण कल्पेन्द्रायु भी, एकविंश सागरोपम है । तथा अच्युतकल्पेन्द्रायुष, बाईस सागरोपम है ।। २५ ।।
कल्पोपपन्न देवायु बाद कल्पातीत देवों का । उत्कृष्टायुष जान अब क्रमशः नौ ग्रैवेयक का ।। प्रथम ग्रैवेयक देवायु, तेईस सागरोपम है । दूसरा ग्रैवेयक देवायु, चौईस सागरोपम है ।। २६ ।।
सागरोपम है । सागरोपम है ||
तीसरा ग्रैवेयक देवायु, पच्चीस चौथा ग्रैवेयक देवायु, छब्बीस पाँचवाँ ग्रैवेयक देवायु, सत्ताईस छठा ग्रैवेयक देवायु, अट्ठाईस
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सागरोपम । सागरोपम ।। २७ ।।