Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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हिन्दी पद्यानुवाद ]
चतुर्थोऽध्यायः
2 लेश्या का वर्णन है 卐 मूलसूत्रम्
पीत-पद्म-शुक्ललेश्या द्वि-त्रि-शेषेषु ॥ ४-२३ ॥ * हिन्दी पद्यानुवाद
प्रथम के दो कल्प उसमें, पीत लेश्या वर्ते जहाँ । तदनु तीनों कल्प उनमें, पद्मलेश्या वत्त वहाँ ।। लान्तकादि कल्प देव, सभी शुक्ललेश्या से भरे । शुभ शुभतर द्रव्य लेश्ये, देव उच्चस्थाने रहे ॥ १७ ॥
* कल्प तथा लोकान्तिक देवों का वर्णन *
卐 मूलसूत्रम्- .
प्राग् ग्रेवेयकेभ्यः कल्पाः ॥ ४-२४ ॥ ब्रह्मलोकालया लोकान्तिकाः ॥ ४-२५ ॥ सारस्वता-दित्य-वह न्य-रुण - गर्दतोय-तुषिता-ऽव्याबाध - मरुतो-ऽरिष्टाश्च ॥ ४-२६ ॥
विजयादिषु द्विचरमाः ॥४-२७ ॥ * हिन्दी पद्यानुवाद
नौ ग्रैवेयक पूर्व द्वादश, देव कल्पोपपन्न हैं। पाँचवें ब्रह्मलोक कल्पे, नौ लोकान्तिक देव हैं ।। सारस्वत आदित्य वह्नि, तथा अरुण गर्दतोय हैं । तृषित अव्याबाध मारुत, अरिष्ट ये उन नाम हैं ।। १८ ।।
विजयादि चार अनुत्तर, विमान देव द्विचरमा है । मनुष्य के दो भव करके, वे मोक्ष-सुख पाते हैं । सर्वार्थसिद्ध विमान देव, एकावतारी कहे । पा जन्म मनुष्य वे पुनः, मोक्षाधिकारी कहे ।। १६ ।।