Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 247
________________ * पंचसूत्री कार्यक्रम * १. सप्त व्यसन - मुक्त समाज की रचना २. समाज की एकता ३. जिनमन्दिरों का निर्माण एवं जीर्णोद्धार ४. सत् साहित्य-सृजन ५. चरित्र-निर्माण सात व्यराग है - मदिरापान, मांसाहार, शिकार, जुआ (धूत क्रीडा), परस्त्रीगमन, वेश्यागमन, चोरी। व्यसन मुक्त मानव समाज धरती पर स्वर्ग की कल्पना को साकार करता है। समाज की एकता के लिए जाति, धर्म, सम्प्रदाय आदि से ऊपर उठना आवश्यक है। सभी मनुष्य समान हैं, प्राणिमात्र अपनी आत्मा के समान है 'आत्मवत् सर्वभूतेषु यह भारतीय संस्कृति का महान् सन्देश है। आचार्यश्री ने श्री महादेव स्तोत्र काव्य में ईश्वर को शिव-शंकर, ब्रह्मा, विष्णु ईश्वर, बुद्ध, अल्लाह आदि बताकर करुणा-निधान, विश्व वात्सल्य-मूर्ति वीतराग परमात्मा का गुणगान किया है। उन्होंने कहा है कि प्राणिमात्र के प्रति प्रेम रखना ही धर्म है, प्रभु-सेवा है। उन्होंने कहा- 'धर्म फूल है जो सुगन्ध और सुन्दरता से सबको सम्मोहित करता है, वह काँटा नहीं जो चुभकर किसी को दुःख पहुंचाता है। अतः मानव प्रेम के सूत्र में गुम्फित होकर जगत् सुख का निर्माण करे। पूज्य श्री सुशील गुरुदेवश्री संस्कृत, प्राकृत एवं गुजराती भाषाओं के मर्मज्ञ एवं अधिकारी विद्वान हैं। स्वयं गुजराती भाषा-भाषी होते हुए भी वे हिन्दी में साहित्य रचते हैं। उन्होंने लगभग १२५ पुस्तकें लिखी हैं जिनमें अधिकांश हिन्दी भाषा में हैं। उनकी दृष्टि में आधुनिक युग की नवपीढ़ी को सस्ते कामुक साहित्य से बचाने के लिए साहित्यकारों को सत् साहित्य का निर्माण करना चाहिए। आचार्यश्री स्वयं इस दिशा में विशेष योगदान कर रहे हैं। नवपीढ़ी को संस्कारित करने के लिए समाज के अग्रगण्य, शिक्षक, व्यापारी, धर्माचार्य, नेतागण आदि स्वयं उच्च एवम् आदर्श-जीवन-यापन करें। जिन पडिमा जिन सारिखी संसार-समुद्र से तिरने के लिए एवं मुक्ति-मन्दिर में पहुँचने के लिए जिनप्रतिमा अलौकिक एवं अद्वितीय नौका तुल्य है। जिनमन्दिर के निर्माण एवं प्राचीन मन्दिरों के जीर्णोद्धार का पुनीत कार्य सद्गृहस्थों को अवश्य करवाना चाहिए। पूज्य गुरुदेवश्री के वरद-करकमलों द्वारा अनेक प्रसिद्ध तीर्थों एवं जिनप्रासादों की अंजनशलाका-प्रतिष्ठायें सम्पन्न हुई हैं। ११८ जिनमन्दिरों की प्रतिष्ठायें एवं अंजनशलाका करवाने का महान् श्रेय पूज्य श्री सुशील गुरुदेवश्री को प्राप्त है। आचार्यश्री का निर्मल, तपशील एवं निस्पृह जीवन कमल के समान निर्लेप पोक्खर पत्तं व निरूवलेवे और धरती के समान क्षमाशील 'पुढवीसमोमुणी हवेज्जा है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264