Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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४१३२-३३ ]
चतुर्थोऽध्यायः * भवनपतिनिकायस्य इन्द्राणां स्थितिषु अपवादः * 卐 मूलसूत्रम्
प्रसुरेन्द्रयोः सागरोपममधिकं च ॥ ४-३२ ॥
* सुबोधिका टीका * द्वावसुरेन्द्रौ चमर-बली असुरेन्द्रयोस्तु दक्षिणार्धाधिपत्योः सागरोपममधिकं च । यथासंख्यं परा स्थितिः भवति । तथा चोत्कृष्टस्थितिः असुरकुमारीणां सार्धचतुः पल्योपमाः । शेषा नागकुमारीणाञ्च समग्रभवनवासिनीनां उत्कृष्टस्थिति किञ्चिद् न्यूनैकपल्योपमा भवति ।। ४-३२ ॥
* सूत्रार्थ-दक्षिणार्ध के अधिपति चमरेन्द्र तथा उत्तरार्ध के अधिपति बलीन्द्र की उत्कृष्टस्थिति अनुक्रम से एक सागरोपम की तथा कुछ सागरोपम से भी अधिक स्थिति है ।। ४-३२ ।।
卐 विवेचनामृत ॥ यहाँ पर भवनपति निकाय की जो स्थिति कही गई है, वह स्थिति उत्कृष्ट जाननी। इनमें दक्षिणार्ध के स्वामी चमरेन्द्र की उत्कृष्टस्थिति एक सागरोपम की है। तथा उत्तरार्ध के स्वामी बलीन्द्र की उत्कृष्टस्थिति साधिक एक सागरोपम की है। शेष नागकुमार इत्यादिक की के भवनपति दक्षिणार्ध के स्वामी धरणेन्द्रादिक जो नौ इन्द्र हैं, उनकी उत्कृष्ट स्थिति डेढ़ पल्योपम की है। तथा उत्तरार्ध के जो भूतेन्द्रादिक नौ इन्द्र हैं उनकी कुछ न्यून दो पल्योपम की उत्कृष्ट स्थिति आयुष्य की है ।। (४-३२)
* वैमानिकदेवानां उत्कृष्टस्थितिः *
ॐ मूलसूत्रम्
सौधर्मादिषु यथाक्रमम् ॥ ४-३३ ॥
....* सुबोधिका टीका * अथ वैमानिकदेवानाञ्च सौधर्मकल्पात् सर्वार्थसिद्धिविमानपर्यन्त सर्वेषां देवानामायूत्कृष्टस्थितिः वर्ण्यते। अत्र प्रतिज्ञानुसारं वैमानिकदेवानां उत्कृष्टा स्थितिः विवक्षितुम् । प्रथमा सौधर्मेशानां कल्पवासिनां उत्कृष्टा स्थितिः वर्ण्यते ।। ४-३३ ।।।
* सूत्रार्थ-अब सौधर्मकल्पादिक देवलोक के देवों की स्थिति क्रमशः-यथाक्रम से कहेंगे ॥ ४-३३ ।।