Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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६२ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
[ ४१३४-३५ ॐ विवेचनामृत अब वैमानिक देवों की अर्थात्-सौधर्म कल्प से लेकर यावत् सर्वार्थसिद्ध विमान तक के समस्त देवों के आयुष्य की उत्कृष्ट स्थिति अनुक्रम से कहेंगे ।। ४-३३ ॥ वैमानिक देवों के आयुष्य की उत्कृष्टस्थिति बताने के लिए यह सूत्र कह रहे हैं
* सौधर्मकल्पवासिदेवानां उत्कृष्टस्थितिः * ॐ मूलसूत्रम्
सागरोपमे ॥ ४-३४ ॥
* सुबोधिका टीका * उत्कृष्टस्थितीयं इन्द्रादिदेवापेक्षया एव ज्ञातव्या। प्रथमसौधर्मकल्पे देवानां परा स्थिति सागरोपमे भवति ।। ४-३४ ।।
* सूत्रार्थ-सौधर्म कल्प के देवों की उत्कृष्ट स्थिति दो सागरोपम की है ।। ४-३४ ।।
ॐ विवेचनामृत सबसे पहले सौधर्म नामक कल्प (देवलोक) में देवों की परा (उत्कृष्टा) स्थिति दो सागरोपम प्रमाण की है। यह उत्कृष्ट स्थिति इन्द्र या सामान्य देवों की अपेक्षा से जाननी चाहिए। शेष सामान्य अन्य देवों की स्थिति जघन्यस्थिति से लेकर उत्कृष्ट के मध्य में अनेक भेदस्वरूप है । (४-३४)
* ईशानकल्पवासिदेवानां उत्कृष्टस्थितिः 23
卐 मूलसूत्रम्
अधिके च ॥ ४-३५॥
* सुबोधिका टीका * ऐशानकल्पवासीनां देवानां उत्कृष्टस्थितिः द्वे सागरोपमेऽधिके परा भवति ॥४-३५ ॥
* सूत्रार्थ-ईशानकल्पवासी देवों की उत्कृष्ट स्थिति दो सागरोपम से कुछ अधिक है ।। ४-३५ ॥