Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
View full book text
________________
५८ ]
5 मूलसूत्रम् -
श्री तत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
* तिर्यंचयोनिविषयः
[ ४।२८
पपातिक मनुष्येभ्यः शेषास्तिर्यग्योनयः ।। ४-२८॥ * सुबोधिका टीका
उपपातजन्मिनः औपपातिका: नारकाः देवाश्च तथा गर्भजा सम्मूर्छनाश्च मनुष्यः तेभ्यः यथोक्ते च शेषाः । एकेन्द्रियादयास्तिर्यग्योनयः भवन्ति । तिर्यग् योनयः समग्रलोकेषु व्याप्ताः यद्यपि प्रधानतया तिर्यग्लोके - मध्यलोके एव तेषां निवासः । तथापि सामान्यात् स्थावरकायिकसद्भावः सर्वत्रोर्ध्वाऽधो लोकेऽपि प्राप्यते । तिर्यग्लोके मुख्यावासतया ते तिर्यग्योनयः ।। ४-२८ ।।
* सूत्रार्थ - उपपात जन्मवाले नारक और देव, तथा गर्भज और सम्मूर्छिम दोनों प्रकार के मनुष्य, इनके सिवाय जितने भी संसारी जीव हैं एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय पर्यन्त, वे सभी जीव तिर्यग्योनि कहे जाते हैं ।। ४-२८ ।।
विवेचनामृत
तिथंच किसको कहा जाता है ? इस प्रश्न का उत्तर प्रस्तुत सूत्र से मिल रहा है । औपपातिक तथा मनुष्य सिवाय के सभी जीव तिर्यग्योनि- तिर्यंच हैं ।
नारक, देव और मनुष्यों के सिवाय सर्व जीवों की
नारक प्रौर देव प्रोपपातिक हैं। तिर्यग्योनि (तिर्यंच) संज्ञा
1
आगम शास्त्र में भिन्न-भिन्न दृष्टि से जीवों के भिन्न-भिन्न भेदों का प्रतिपादन किया है । इन्द्रियों की अपेक्षा जीवों के पाँच भेद पड़ते हैं । एकेन्द्रिय, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय तथा पञ्चेन्द्रिय । फिर पञ्चेन्द्रिय जीवों के नारक, देव, मनुष्य और तिर्यंच इस तरह चार भेद हैं । एवं नारक, देव और मनुष्य सिवाय के समस्त पञ्चेन्द्रिय जीव तथा एकेन्द्रिय से चतुरिन्द्रिय तक के जीव तिर्यंच कहलाते हैं ।
किन्तु तिर्यंच कहने से एकेन्द्रिय से पञ्चेन्द्रिय तक सब एक प्रकार के होते हैं । देव, नारकी तथा मनुष्य के लिए जैसे नियत स्थान हैं वैसे तिर्यंचों के लिए नियत स्थान नहीं है । अर्थात् - देव, नारकी तथा मनुष्य जीव लोक के किसी एक विभाग में पाये जाते हैं । किन्तु तिथंच जीवों के लिए खास नियत स्थान नहीं हैं । वे समस्त लोक में पाये जाते हैं । (४-२८)