Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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३।१५ 1
तृतीयोऽध्यायः
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* सूत्रार्थ - वे मनुष्य आर्य और म्लेच्छ दो प्रकार के हैं । अर्थात् श्रार्य और म्लेच्छ के भेद से मनुष्य दो प्रकार के हैं ।। ३-१५ ।।
विवेचनामृत 5
मनुष्यों के मुख्य दो भेद हैं । एक आर्य और दूसरे म्लेच्छ । प्रार्य यानी श्रेष्ठ । शिष्टलोक के अनुकूल जो आचरण करे वह श्रार्य कहलाता है । आर्य से विपरीत जो मनुष्य प्रतिकूल आचरण करे वह श्रनार्य - म्लेच्छ कहलाता निमित्त भेद से आर्य मनुष्यों के छह भेद हैं । जिनके नाम हैं - ( १ ) क्षेत्रार्य, (२) जात्यार्य ( जाति आर्य ), (३) कुलार्य, (४) कर्मार्य, (५) शिल्पार्य तथा ( ६ ) भाषार्य ।
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(१) क्षेत्रार्य - पन्द्रह प्रकार की कर्मभूमि में भरत, ऐरावत के २५५ देश, तथा पाँच महाविदेह के १६० चक्रवर्ती विजय ये सब आर्य संज्ञक देश कहे जाते हैं । इन क्षेत्रों में जन्म पाये हुए मनुष्यों को क्षेत्रार्य कहते हैं । अर्थात् - प्रत्येक महाविदेह के ३२ चक्रवर्ती विजय, प्रत्येक भरत के साढ़े पच्चीस देश तथा प्रत्येक ऐरावत के भी साढ़ े पच्चीस देश आर्य हैं । इसलिए इन क्षेत्रों में जन्मे हुए मनुष्य क्षेत्र प्रार्य यानी क्षेत्रार्यं कहलाते हैं ।
(२) जात्यार्य - इक्ष्वाकु, विदेह, हरि, अम्बष्ठ, ज्ञात, कुरु, बुबुनाल, उग्र, भोग तथा राजन्य इत्यादि उत्तम वंशों में उत्पन्न हुए मनुष्य जाति आर्य हैं, उनको जात्यार्य कहते हैं ।
(३) कुलार्य -- कुल की अपेक्षा जो आर्य हैं, उन्हें कुलार्य कहते हैं । जैसे - कुलकर, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव इत्यादि उत्तम कुलों में उत्पन्न हुए मनुष्य कुल प्रार्य हैं, उन्हें कुलार्य कहते हैं ।
(४) कर्मार्थ - कर्म यानी धंधा व्यापार जो अनाचार्यक कर्म की अपेक्षा से प्रार्य हैं । अर्थात् - अल्प पाप वाले धंधे - व्यापार करने वाले मनुष्य कर्म श्रार्य हैं । उनको कर्मा कहते हैं । जैसे – यजन, याजन, अध्ययन, अध्यापन का प्रयोग कर्म करने वाले, तथा कृषि (खेती), लिपि ( लेखन), वाणिज्य (व्यापार) की मूलरूप पोषणवृत्ति से प्रजा का पोषण करने वाले हैं । अर्थात् व्यापारी, खेडू त, सुथार, तथा अध्यापक इत्यादि कर्म श्रार्य हैं । उनको कर्मा कहते हैं ।
(५) शिल्पार्य - शिल्प यानी कारीगरी । कारीगरी के कर्म करने की अपेक्षा से जो आर्य हैं । अर्थात् – मानवजीवन में जरूरी कारीगरी करने वाले मनुष्य शिल्प श्रार्य हैं, उन्हें शिल्पार्य कहते हैं । जैसे—तन्तुवाय- बुनकर (वस्त्र बुनने वाले), कुलाल-कुळ भकार ( कुंभार), नापित-नाई ( हज्जाम ), तुन्नवाय ( सूत कातने वाले ) तथा देवट इत्यादि ।
(६) भाषार्य - शब्द व्यवहार की अपेक्षा जो प्रार्य हैं, उनको भाषार्य कहते हैं । अर्थात् शिष्टपुरुषों के मान्य, उत्तम व्यवस्थित शब्दों से युक्त, तथा स्पष्ट उच्चार वाली, ऐसी शिष्ट भाषा जब वे मनुष्य भाषा श्रार्य हैं। जैसे- श्रुतकेवली श्रीगणधरादिक शिष्ट - विशिष्ट सर्वातिशय सम्पन्न व्यक्तियों के बोलने की जो संस्कृत या प्राकृत अर्धमागधी इत्यादि भाषाएँ हैं, उनकी जिसमें मुख्यता पाई जाती है, तथा लोक में जो प्रत्यन्त प्रसिद्ध हैं, एवं स्फुट - बाल - भाषा के सदृश व्यवहार