Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
View full book text
________________
४।१३ ] चतुर्थोऽध्यायः
[ २७ ताराग्रहास्त्वनियतचारित्वात् सूर्यचन्द्रमसामूर्ध्वमधश्च चरन्ति । सूर्येभ्यः दशयोजनावलम्बिनः भवन्ति । समभूतलाद् भूमिभागाद् अष्टसु योजनशतेषु सूर्याः, ततो योजनानां अशीत्यां चन्द्रमसः, ततो योजनानां विंशत्यां तारा इति ।
द्योतयन्तः प्रकाशयन्तः वा इति ज्योतींषि विमानानि तेषु भवा ज्योतिष्काः ज्योतिषो वा देवा ज्योतिरेव वा ज्योतिष्काः ।
मौलिमुकुटेषु शिरोमुकुटोपगूहितैः प्रभामण्डलकल्पः उज्ज्वलैः सूर्य-चन्द्रतारामण्डलैः यथास्वं चिह्न : शोभमानाः प्रकाशमन्तः ज्योतिष्काः भवन्तीति ।
चलज्योतिष्काः सर्वत्र गतिमन्ताः भ्रमणशीलाः भवन्ति ।। ४-१३ ।।
* सूत्रार्थ-ज्योतिष्क निकाय के देव सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र और प्रकीर्णक तारा के भेद से पाँच प्रकार के हैं ।। ४-१३ ।।
विवेचनामृत तीसरा निकाय ज्योतिष्क देवों का है। वह पाँच प्रकार का है--सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र और प्रकीर्णक तारा।
ज्योतिष्क का स्थान
मेरु पर्वत की समतल भूमि से ७६० योजन तक ऊँचाई का परिमाण कहा है, तथा तिर्छा भी असंख्याता द्वीपसमुद्र परिमाण कहा है। समतल भूमि से ८०० योजन की ऊँचाई पर सूर्य का विमान है। सूर्य विमान से ८० योजन की ऊँचाई पर चन्द्र का विमान है। चन्द्र के विमान से बीस योजन ग्रह, नक्षत्र तथा तारागण हैं।
कितने ही तारागण अनियतचारी होते हैं। वे किसी समय सूर्य और चन्द्र के नीचे तथा किसी समय ऊपर भी गति करते हैं। जब नीचे गति करते हैं तब उस समय वे सूर्य से दस योजन पर्यन्त नीचे रहते हैं।
चन्द्र से तीन योजन ऊँचाई में नक्षत्रों के विमान पाते हैं। फिर आगे नक्षत्रों से तीन योजन की ऊँचाई में बुधग्रह, बुधग्रह से तीन योजन की ऊँचाई में शुक्रग्रह, शुक्रग्रह से तीन योजन की ऊँचाई में गुरुग्रह, गुरुग्रह से चार योजन की ऊँचाई में मंगलग्रह, तथा मंगलग्रह से चार योजन की ऊँचाई में शनिग्रह आते हैं।
___ इस प्रकार सम्पूर्ण ज्योतिषचक्र की ऊंचाई एक सौ दस (११०) योजन प्रमाण की है। तथा तिर्यग्-लम्बाई में असंख्य द्वीपसमुद्र प्रमाण की है।