Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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5 मूलसूत्रम् -
श्री तत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
* वैमानिक निकायस्य देवलोकस्य श्रवस्थानम्
उपर्युपरि ॥ ४-१६ ॥ * सुबोधिका टीका
सूत्रेदम् कल्पविषयायैव न तु देवविमानेभ्यः । वेदितव्याः । नैव क्षेत्रे नापि तिर्यग् अधो वा ।। ४-१६ ॥
[ ४२०
उपर्युपरि च यथानिर्देशं
* सूत्रार्थ - वैमानिक सौधर्म आदि कल्पों का अवस्थान क्रम से ऊपर-ऊपर है ।। ४-१६ ।।
विवेचनामृत 5
नामनिर्देश के अनुसार कल्पों का और कल्पातीतों का अवस्थान है । अर्थात् निर्देश के अनुसार सौधर्म कल्प के ऊपर ऐशानकल्प, तथा ऐशानकल्प के ऊपर सनत्कुमार कल्प है। इसी क्रम से अच्युत कल्प पर्यन्त कल्पों का अवस्थान ऊपर ऊपर है । ये कल्प न तो एक क्षेत्र में हैं- समस्त के समस्त एक ही जगह अवस्थित नहीं हैं, न तिर्यक् या नीचे-नीचे की तरफ ही
अवस्थित हैं ।
सारांश - वैमानिक निकाय के देवलोक ऊपर-ऊपर आये हुए हैं । वैमानिक निकाय का अवस्थान व्यन्तरनिकाय की माफिक अवस्थित नहीं है । तथा ज्योतिष्क की तरह तिच्र्च्छा भी नहीं है, किन्तु ऊपर-ऊपर ही है ।। ४-१६ ।।
* वैमानिकभेदानां क्रमशः नामानि
5 मूलसूत्रम्
सौधर्मेशान - सनत्कुमार- माहेन्द्र ब्रह्मलोक - लान्तक- महाशुक्रसहस्रारेष्वानत प्रारणतयोराररणाच्युतयोर्नवसु ग्रैवेयकेषु विजय- वैजयन्त- जयन्ता - ऽपराजितेषु सर्वार्थसिद्ध े च ॥ ४-२० ॥
* सुबोधिका टीका
द्वादशकल्पाः भवन्ति ते चैते ऐशानसनत्कुमारः महेन्द्रः, ब्रह्मलोकः, लान्तकः, महाशुक्रः, सहस्रारः, श्रानतः, प्रारणतः, अच्युतश्चैते द्वादशाः । तद्यथा-सौधर्मस्य कल्पोपरि ऐशानः कल्पः । ऐशानस्योपरि सनत्कुमारः, सनत्कुमारस्योपरि माहेन्द्रः इत्यादि । द्वादश कल्पानामोपरि ग्रैवेयकं नवग्रैवेयकाः भवन्ति ।