Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
[ ४१ * सूत्रार्थ-देव चार निकाय वाले हैं। भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक ।। ४-१ ॥
के विवेचनामृत तीसरे अध्याय में नारकी, मनुष्य तथा तिर्यंच जीवों का वर्णन किया गया है, अब इस चतुर्थ अध्याय में देवों-देवताओं का वर्णन करते हैं।
देव चार निकाय वाले हैं। एक प्रकार के समूह या जाति को निकाय कहते हैं। इसलिए देवों के चार निकाय हैं। अर्थात् देव-देवता चार निकाय यानी चार प्रकार के होते हैं। (१) भवनपति, (२) व्यन्तर, (३) ज्योतिष्क-ज्योतिषी और (४) वैमानिक । उन देवों के निवास
त्पत्ति के स्थान भिन्न-भिन्न हैं और ये चार प्रकार के हैं। उनका वर्णन करते हुए कहा है कि
अधोलोक में पहली रत्नप्रभा पृथ्वी का पिण्ड एक लाख और अस्सी हजार (१,८०,०००) योजन का है। उसमें ऊपर और नीचे का एक-एक हजार योजन छोड़कर मध्य के एक लाख और इट्ठोत्तर हजार (१,७८,०००) योजन में भवनपति देवों के निवास हैं। ऊपर जो एक हजार योजन का भाग छोड़ा है, उसमें से ऊपर नीचे सौ-सौ योजन छोड़कर मध्य में आठ सौ योजन के भाग में व्यन्तर देवों के निवास हैं। ऊपर के सौ योजन में से ऊपर नीचे दस-दस योजन छोड़कर मध्य के नब्बे योजन में वारण-व्यन्तर देवों के निवास हैं। समभूतला पृथ्वी से ऊंचे (ऊर्व) सात सौ नब्बे (७६०) योजन प्रमाण विस्तार में ज्योतिष देवों के निवास हैं। वहाँ से कुछ अधिक अर्धरज्जु ऊपर जाने के पश्चात् वैमानिक देवों की सीमा हद प्रारम्भ होती है।
यहाँ पर भवनपति आदि देवों के जो स्थान बताये गये हैं, वे स्थान जन्म के आश्रय से हैं। किन्तु अपने-अपने उत्पत्ति स्थान में उत्पन्न हुए ऐसे भवनपति आदि देव लवणसमुद्र आदि स्थलों में आये हुए निवासों में भी रहते हैं तथा जम्बूद्वीप को जगती के ऊपर आई हुई वेदिका पर और अन्य अति रमणीय स्थलों में क्रीड़ा करते हैं।
मध्यलोक में जम्बूद्वीप से असंख्य द्वीप-समुद्र जाने के बाद भी व्यन्तर देवों के आवास हैं। वहाँ पर कोई व्यन्तर देव उत्पन्न नहीं होता है। पूर्व में बताये हुए स्थानों में उत्पन्न हुए व्यन्तरदेव ही वहाँ आकर निवास करते हैं।
* प्रश्न-जब देव-देवता अधोलोक और मध्यलोक में भी रहते हैं, तो फिर ऊर्ध्वलोक को ही देवों/देवताओं का आवास क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-देवों/देवताओं के चार निकाय हैं। भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक । उनमें भवनवासी अधोलोक में रहते हैं, व्यन्तर तथा ज्योतिषी तिर्यक्-तिमॆलोक में रहते हैं। किन्तु देवों में वैमानिकदेव मुख्य-प्रधान हैं, तथा उनका आवास-निवास ऊर्ध्वलोक में ही है। इस हेतु से ऊर्ध्वलोक को ही देवों/देवताओं का आवास-निवास कहा गया है।