Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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श्री तत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
( १ ) पहले सौधर्म देवलोक में शकेन्द्र है ।
(२) दूसरे ईशान देवलोक में ईशानेन्द्र है । (३) तीसरे सनत्कुमार देवलोक में सनत्कुमारेन्द्र है ।
(४) चौथे माहेन्द्र देवलोक में महेन्द्र है।
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(५) पाँचवें ब्रह्मदेवलोक में ब्रह्म ेन्द्र है। (६) छठे लान्तकदेवलोक में लान्तकेन्द्र है ।
(७) सातवें महाशुक्रदेवलोक में महाशुकेन्द्र है ।
( ८ ) आठवें सहस्रार देवलोक में सहस्त्रारेन्द्र है । (६) नवमे प्रानतदेवलोक तथा
(१०) दसवें प्रारणतदेवलोक में एक ही प्राणतेन्द्र है ।
(११) ग्यारहवें प्रारणदेवलोक तथा
(१२) बारहवें श्रच्युतदेवलोक में एक ही अच्युतेन्द्र है ।
उन इन्द्रों के नाम कल्पों के नाम के अनुसार ही हैं। इसी प्रकार सर्व देवलोकों में उसी देवलोक के नाम वाले एकैक इन्द्र हैं । किन्तु प्रानत-प्राणत नाम वाले इन दो देवलोकों का एक ही इन्द्र है, उसे प्राणतेन्द्र कहते हैं तथा आरण- अच्युत नामवाले इन दो देवलोकों में भी एक ही इन्द्र है, उसे अच्युतेन्द्र कहते हैं एवं भवनपतियों के २० इन्द्र हैं, व्यन्तरों के १६ इन्द्र हैं, ज्योतिषियों के २ इन्द्र हैं तथा वैमानिकों के १० इन्द्र हैं । सब मिलाकर कुल ४८ इन्द्र हुए । अन्य शास्त्रों में भी ६४ इन्द्र कहे हुए हैं। जैसे - दस भवनपतियों के २० इन्द्र, सोलह व्यन्तरों के ३२ इन्द्र, ज्योतिषियों के २ इन्द्र तथा वैमानिकों के १० इन्द्र । सब मिलाकर कुल ६४ इन्द्र माने गये हैं । ये सभी सम्मिलित हो के श्री तीर्थंकर भगवान के जन्माभिषेकादि महोत्सव करने के लिए अवश्य
हैं।
सारांश - असुरकुमार इत्यादिक प्रत्येक भेद के देवों में दो-दो इन्द्र होने से भवनपति के कुल २० इन्द्र हैं । व्यन्तरनिकाय के व्यन्तर और बारणव्यन्तर इस तरह दो भेद हैं । इन दोनों के अवान्तर भेद आठ-आठ । प्रत्येक अवान्तर भेद के देवों में दो-दो इन्द्र होने से व्यन्तरों के १६ भेद तथा वारणव्यन्तरों के १६ भेद, दोनों मिलाकर व्यन्तरनिकाय के कुल ३२ इन्द्र हैं ।
ज्योतिक निकाय के सूर्य और चन्द्र ये दो इन्द्र हैं । वैमानिक निकाय के प्रथम आठ देवलोक इन्द्र तथा नौवें दसवें देवलोक का एक इन्द्र एवं ग्यारहवें - बारहवें देवलोक का एक इन्द्र, इस तरह कुल १० इन्द्र हैं । मिलकर इन समस्त इन्द्रों की संख्या ६४ होती है। ये चौंसठ इन्द्र प्रत्येक तीर्थंकर के जन्म होने के पश्चात् प्रभु को मेरुपर्वत के शिखर पर आये हुए पाण्डुक वन में लाते हैं तथा उस वन में स्थित शिलाओं पर विद्यमान सिंहासन पर उनका जन्माभिषेक करते हैं ।