Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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श्री तत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
(१) एक तो वे हैं कि जिनके देवियाँ भी हैं तथा प्रवीचार भी है।
(२) दूसरे वे हैं कि जिनके देवियाँ नहीं हैं, तो भी प्रवीचार पाया जाता है ।
(३) तीसरे वे हैं कि जिनके न देवियाँ हैं और न प्रवीचार है ।
इनमें से वे देव कौन से हैं जिनके देवियाँ हैं तथा प्रवीचार भी है ? उन्हीं को बताने के लिए अब प्रागे के सूत्र में कहते हैं ।। ( ४-७ )
* देवानां प्रचाररणा
१२ ]
मूलसूत्रम्
[ ४८
कायप्रवीचारा श्रा ऐशानात् ॥ ४-८ ॥
* सुबोधिका टीका
काय नाम शरीरम् । प्रवीचारं मैथुनसेवनम् । शरीरेणेन्द्रियैः स्त्रीसम्भोगः काय प्रवीचारः । भवनपति व्यन्तर-ज्योतिष्क- सौधर्म - ईशान - पर्यन्ताः देवा: कायप्रवीचारा: भवन्ति । कायेन येषां प्रवीचारः ते कायप्रवीचाराः । ते चातिसंक्लेशयुक्ताः प्रवीचारो नाम मैथुनविषयोपसेवनम् । ते हि संक्लिष्टकर्माणः मनुष्यवत् मैथुनसुखमनुप्रलीयमानाः तीव्रानुशयाः कायसंक्लेशजं सर्वाङ्गीणं स्पर्शसुखमवाप्य प्रीति वा रतिमुपलभन्ते ।
अत्र देवीनां अस्तित्वं किमपि नैव निर्दिष्टम् । अतः व्याख्यानतो 'विशेष : प्रतिपत्तिः' इत्यागमव्याख्यानेन ज्ञातव्यम् । तथाहि
"अस्माद् भवनवासि व्यन्तर- ज्योतिष्क-सौधर्मेशान कल्पेषु जन्मोत्पद्यन्ते देव्यः, न परत इति । " ( श्री सिद्धसेनगरणी ) ।। ४-८ ।।
* सूत्रार्थ - भवनवासी देवों से ईशान स्वर्ग पर्यन्त के देव ही देह - शरीर द्वारा प्रवीचार यानी मैथुन (विषय) सेवन करते हैं ।। ४-८ ।।
विवेचनामृत 5
काय नाम देह- शरीर का है, तथा प्रवीचार नाम मैथुन - विषयसेवन का है । देह शरीर के द्वारा जो स्त्रीसम्भोग, मैथुन - विषयसेवन किया जाता है, उसे कायप्रवीचार कहते हैं । भवनपति, व्यन्तर, ज्योतिष्क, पहले सौधर्म और दूसरे ऐशान देवलोक के वैमानिक देव ये सभी मनुष्यों के समान काय प्रवीचार करते हैं । अर्थात् सर्वांग देह शरीर द्वारा मैथुन - विषयों का उपभोग संभोग करते हुए प्रसन्नता को प्राप्त होते हैं ।