Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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३।१८ ]
तृतीयोऽध्यायः
* जीव और उनकी कायस्थिति *
சு
(१) पृथ्वीकाय
(२) प्रकाय
(३) ते काय
(४) वायुकाय
(५) प्रत्येक वनस्पतिकाय
असंख्यात
उत्सर्पिणी
तथा
अवसर्पिणी
(६) साधारण वनस्पतिकाय - श्रनन्त उत्सर्पिणी- श्रवसर्पिणी
(७) विकलेन्द्रिय - संख्याता हजार वर्ष
(८) पंचेन्द्रिय तिर्यंच - मनुष्य - सात-आठ भव तक ।
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[ ६१
सारांश - ऊपर मनुष्य और तिर्यंच जीवों की भवस्थिति और कार्यस्थिति का दिग्दर्शन
करवाया ।
वर्तमान भव के श्रायुष्य की स्थिति भवस्थिति है तथा उसी भव में पुनः पुनः निरन्तर उत्पत्ति का जो काल वह कार्यस्थिति है । अर्थात् - जिस भव में पुनः पुनः निरन्तर जितने काल तक उत्पन्न हो सके उस भव की इतनी कार्यस्थिति जाननी । पृथ्वीकाय का जीव असंख्य उत्सर्पिणीअवसर्पिणी पर्यंन्त पुनः पुनः पृथ्वीकाय रूपे पैदा हो सकता है । इस तरह अप्कायादिक में भी जानना । मनुष्य का जीव श्रात्मा पुनः पुनः सात भव तक मनुष्य हो सकता है । आठवें भाव में वह जीव देवकुरु या उत्तरकुरुक्षेत्र में युगलिक मनुष्यरूपे उत्पन्न हो जाय तो मनुष्य की काय स्थिति आठ भव की हो जाती है । अन्यथा सात भव की होती है । भी समझना । जघन्य कायस्थिति मनुष्यों की तथा समस्त की है ।। ३-१८ ।।
इस तरह तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों में प्रकार के तिर्यंचों की अन्तर्मुहू