Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
View full book text
________________
४२ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
[ ३११ पर मेखला के ही माप की विद्याधरों की श्रेणियाँ आयी हैं। उनमें दक्षिण दिशा की श्रेणी में पचास नगर हैं तथा उत्तर दिशा की श्रेणी में साठ नगर हैं। उसके आसपास उस-उस नगरी के देश हैं। इन नगरियों में उत्तम कोटि के रत्नों से बने महलों में विद्याधर रहते हैं।
इन्द्र के लोकपालक देवों के सेवकों का निवास :
उन विद्याधरों की श्रेणी से ऊँचे दश योजन छोड़कर के उपर्युक्त जैसी ही दक्षिण दिशा में तथा उत्तरदिशा में मेखलाएँ और दो श्रेणियाँ हैं। उनमें इन्द्र के लोकपाल देवों के सेवक रत्नमय भवनों में रहते हैं।
व्यन्तरों की क्रीड़ा के स्थान :
इन भवनों से ऊँचे पाँच योजन जाते वैताढय पर्वत का भाग पाता है। इसके मध्य में पद्मवर नामक वेदिका और दोनों तरफ बगीचे हैं। इन बगीचों में रहे हए छोटे-छोटे क्रीडापर्वतों पर कदलीगृहों में तथा वाव-वापी आदि में व्यन्तरदेव क्रीड़ा करते हैं।
गुफाएं :
वैताढय पर्वत में पूर्व दिशा की ओर के विभाग में खण्डप्रपाता नाम की गुफा है, तथा पश्चिम दिशा की ओर के विभाग में तमिस्रा नाम की गुफा है। प्रत्येक गुफा पाठ योजन ऊँची, बारह योजन पहोली तथा पचास योजन लम्बी है। वे गुफाएँ सर्वदा अन्धकारमय हैं।
ऋषभ कूट :
हिमवन्त पर्वत के समीप दक्षिण दिशा में गंगानदी और सिन्धुनदी के बीच में ऋषभकूट नामक पर्वत है। उस पर ऋषभ नामक महधिक देव का निवास है।
तीर्थ :
जहाँ पर गंगा नदी का समुद्र के साथ संगम होता है, वहाँ पर मागध नामक तीर्थ है तथा जहाँ पर सिन्धु नदी का समुद्र के साथ संगम होता है, वहाँ पर प्रभास नामक तीर्थ है एवं मागध और प्रभास इन दोनों तीर्थों के बीच में वरदाम नामक तीर्थ है।
[यहाँ तीर्थ यानी समुद्र में उतरने का मार्ग जानना।] बिल-गुफाएँ :
इस वैताढ्य पर्वत की दक्षिण दिशा में गंगा नदी और सिन्धु नदी के पूर्व तथा पश्चिम कांठे के ऊपर नौ-नौ बिल यानी गुफाएँ हैं। कुल छत्तीस (३६) बिल यानी गुफाएँ हैं। इसी तरह वैताढय पर्वत की उत्तर दिशा में भी छत्तीस (३६) बिल यानी गुफाएँ हैं। कुल बहत्तर (७२) बिल-गुफाएँ हैं। इन बिलों-गुफाओं में छठे आरे के मनुष्य बसते हैं। इस तरह भरतक्षेत्र का संक्षिप्त सामान्य वर्णन जानना ।