Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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तृतीयोऽध्यायः
[ २७ (३) पहली, दूसरी और तीसरी नरकभूमि से आये हुए जोव-प्रात्मा अरिहन्त-तीर्थकर हो सकते हैं।
(४) पहलो चार नरकभूमियों से आये हुए जीव-प्रात्मा केवली-केवलज्ञानी हो सकते हैं। (५) पहली पाँच नरकभूमियों से आये हुए जीव-आत्मा सर्वविरति-संयमी हो सकते हैं । (६) छठी नरकभूमि से आये हुए जीव-आत्मा देशविरति श्रावक हो सकते हैं ।
(७) सातों नरकभूमियों से अर्थात् किसी भी नरकभूमि से आये हुए जीव-आत्मा सम्यक्त्व प्राप्त कर सकते हैं।
* प्रश्न-विश्व के कौनसे पदार्थ नरकभूमियों में नहीं हो सकते हैं ?
उत्तर- द्वीप, समुद्र, कुण्ड, पर्वत, नगर-शहर, गाँव, वृक्ष, घास इत्यादि छोड़ बादर वनस्पति, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय, पञ्चेन्द्रिय, तिथंच तथा मनुष्य एवं देव इत्यादि नरकों में नहीं हो सकते हैं। किन्तु मित्रता, वैक्रियलब्धि एवं समुद्घात के विषय में अपवाद भी है। केवलीसमुद्घात के विषय में कहा है कि-केवलीसमुद्घात में केवली जीवात्मा के आत्मप्रदेश सम्पूर्ण लोकव्यापी हो जाने से सातों नरक में भी होते हैं। वैक्रियलब्धि द्वारा मनुष्य तथा तिर्यंच भी नरक में जा सकते हैं। अपने पूर्वभव के मित्र को सान्त्वना देने के लिए देव भी नरक में जाते हैं।
प्रश्न-कौन से देव कौनसी नरकभूमि तक जा सकते हैं ?
उत्तर-(१) भवनपतिदेव और व्यन्तर जाति के देव पहली रत्नप्रभा नरकभूमि तक जा सकते हैं।
(२) वैमानिक देव तीसरी वालुकाप्रभा नरकभूमि तक जा सकते हैं। तथा कदाचित् चौथी पंकप्रभा नरकभूमि में भी वैमानिक देव जा सकते हैं। जैसे-सती सीताजी का जीव सीतेन्द्र चौथी नरकभूमि में रहे हुए लक्ष्मणजी के जीव को आश्वासन देने के लिए वहाँ गया था।
पन्द्रह प्रकार के नाम वाले परमाधामी देव तीसरी वालुकाप्रभा नरक तक ही जा सकते हैं। ये परमाधामी देव प्रारम्भ की तीन नरक भूमियों के नारकी जीवों को केवल असह्य दुःख देने के लिए ही जाते हैं।
(३) द्वीप-समुद्र आदि की अवस्थिति-पहली रत्नप्रभा नरकभूमि को छोड़कर शेष छह नरकभूमियों में न तो द्वीप, समुद्र, पर्वत और सरोवर ही हैं; न गाँव, नगर-शहर आदि हैं; न वृक्ष, लता इत्यादि बादर वनस्पतिकाय हैं, न बेइन्द्रिय से लेकर पञ्चेन्द्रिय तक तिथंच हैं; तथा न मनुष्य हैं और न किसी प्रकार के देव ही हैं। किन्तु पहली रत्नप्रभा नरक भूमि का कुछ भाग मध्यलोक में सम्मिलित है। इस हेतु से मेरुपर्वत की समतल भूमि से नौ सौ योजन ऊंडी-गहरी सलीलावती नामक विजय है, जिसमें उपर्युक्त द्वीप, समुद्र तथा देवतादिक पाये जाते हैं। शेष नरकों में