Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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संन्या
उ ४३७
मुख "गणिाम: नद्विपरीतं शुभस्य
उ
ताभ्यामपरा भूमयोऽनस्थिताः तू १६ 'तासुत्रिंशदनविशतिनदशदश
त्रिचनेनरशतसहस्राणि
पैन नैव यथाक
तिर्यग्योनिजानांच नीमंदतावाभावाधिकरण
गीर्यविशेषेभ्यस्तद्विशेषः तेष्ये रुप्तिदशसमदशाद्राविंशतित्रयस्त्रित्सागरोपमा सत्यानां परा
स्थितिः
तेजसमपि
पू ७८८ पू ६८०
म्य
उ ४६१
पू. ८१५
पू ७४३
द दर्शन मोहांतराय यो दर्शनालाभौ दर्शन विशुद्धिर्विनय संपन्नता शीलवतेष्वननिचागेऽभीक्ष्णज्ञानोपयोगसंवेगो श तिनस्त्यागतापसी साधुसमाधिर्वयावृत्त्यकरणमईदाचार्य यहुश्रुतप्रवचनभविश्यका परिहाणिर्मार्ग प्रभासत्यमिनितीर्थ
सुष
मिया भयान्यकशपकायोहास्यातिशोकभयनुगुप्माश्रीgajenदान्तानुयात्यास्यानप्रत्याख्यानसंचलन निक carrier: htanनगायालोमाः उ ८४३ दशवर्षसहस्राणि प्रथमायां दशयोजनावगाहः दशपुचद्वादशविकल्पा कल्पोपपत्र
यू ११४०
पू ८९०
पर्यनाः.
उ १०५७ | दुःखशोकतापाक्रन्दनवधपरिदेव
नाकपायकपायवेदनीसम्यक्त्व
पृष्ठगंग्या
दानलाभभोगोपभोगवीर्याणि च दिग्देशानर्थदंड चिरनिसामायिकप्रोपो. पवासोपभोगपरिभोगपरिमाणातिथिसंविभागवत सपनश्च दुःखमेव वा
देवाश्चतुर्णिकायाः
देशसर्वतो मनी
देवनारकाणामुपपादः द्रव्याणि
द्रव्याश्रया निर्गुणागुणाः उ ५६६ द्विनवाटादर्शक विशतित्रिभेदा यथाक्रमं यधिकादिगुणनां तु
पू. ६
उ 443
१०१
उ ६४८
नान्यात्मपरोभयस्थानान्यस श्रम्य उ १५४२
पू. ३
उ ६४०
प्र ७२६
उ २६ उ ४३४
पू ५१५ उ ४१२
A
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