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ताओ उपनिषद भाग ४
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'संसार में ताओ की तुलना उन नदियों से की जाए जो बह कर समुद्र में समा जाती हैं।'
नदियां जैसे चुपचाप बिना किसी बंधे हुए रास्ते के, अंधेरे में टटोलती हुई चुपचाप सागर तक पहुंच जाती हैं और लीन हो जाती हैं। संसार में, लाओत्से कहता है, ताओ की तुलना इस भांति की जाए कि आप भी जब चुपचाप संसार के सारे रास्तों पर टटोलते अपने भीतर के मौन सागर में डूब जाते हैं, जिस दिन आपके व्यक्तित्व की नदी आपके भीतर के मौन सागर में लीन हो जाती है, उस दिन आप धर्म को उपलब्ध हो जाते हैं ।
यह कठिन दिखाई पड़े, कठिन है नहीं; असंभव भी दिखाई पड़े तो भी कठिन नहीं है। एक बार ठीक से मूल सूत्र समझ में आ जाए तो लाओत्से का महामंत्र बहुत ही सरल है। वह इतना ही है: अपने को परिपूर्णता से स्वीकार कर लेना और अपने को तराशने की कोशिश न करना । बुरे-भले जैसे भी हैं, अनगढ़, परमात्मा ने ऐसा ही चाहा है, और हम परमात्मा से ज्यादा बुद्धिमान होने की कोशिश न करेंगे। उसने जैसा चाहा है, उसकी मर्जी से हम राजी हैं। यह राजीपन, यह एक्सेप्टबिलिटी, यह स्वीकार-भाव लाओत्से का महामंत्र है। फिर नदी सागर में गिर जाती है।
पांच मिनट रुकेंगे, कीर्तन करें, और फिर जाएं।