________________
स्याद्वादबोधिनी-१०
गुण प्रस्तुत करने का कारण स्पष्ट करते हुए, प्राचार्य महाराजश्री ने कहा है-'परीक्षेति' ।
गुणान्तर परीक्षा में अपने आपको समर्थ पण्डित मानता हुआ (आपके प्रति अनन्य भक्तिभाव होने के कारण) यथार्थवाद नामक गुण का ही प्रतिपादन करता हूँ, क्योंकि इस एक मात्र गुण से अन्य मतों के द्वारा प्रतिपादित अन्य देवताओं से आपका वैशिष्टय प्रकट हो जाता है। ___'यथार्थम' इस पद में अव्ययीभाव समास (अर्थान अनतिक्रम्य) है। पश्चात् 'पदः' के सार्थ कर्मधारय समास है। (यथार्थ चासौ वादः)। गाह, विलोडने से निष्पन्न 'विगाहन्ताम्' का अर्थ यद्यपि नदी आदि को तैरने में कुशलता को द्योतित करता है तथापि उपसर्ग से धातु का अर्थ भी बदल जाता है-इस सिद्धान्त के अनुसार प्रार्थना के अर्थ में लोट् लकार मानना चाहिए ।
जिसमें अविरोधपूर्वक अनेक धर्म रहते हैं, उसे वस्तु कहते हैं- 'वसन्ति अनेके धर्माः यत्र तद् वस्तु कथ्यते' यह भाष्यकार को नियुक्ति है । वस् + तुन् - पदार्थ में अनेक धर्म विद्यमान रहते हैं, तथापि नयवाद का आश्रय लेकर कुछ विद्वान् कपिलादि उन्हें 'नित्य' कहते हैं। पर्यायवाद