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स्याद्वादबोधिनी - २४
पातञ्जलयोगदर्शन कारोऽपि नित्यानित्यमेव सर्वं वस्तु प्रपन्नमिति स्वीकरोति । बौद्धाः अपि एकस्मिन् चित्रपटे नीलानील धम आमनन्ति । एवं अनेकान्तवादस्याद्वादसिद्धान्तः सर्वमान्य एवेति दिक् ।
भाषानुवाद
* श्लोकार्थ- दीपक से लेकर आकाशपर्यन्त समस्त पदार्थ नित्यानित्य [ नित्य- अनित्य ] स्वभाव वाले हैं; क्योंकि कोई भी वस्तुस्याद्वाद सिद्धान्त की मर्यादा का अतिक्रमण नहीं करती। ऐसी स्थिति में भी हे देवाधिदेव ! आपके विरोधी दीपक आदि को सर्वथा अनित्य तथा आकाशादि को सर्वथा नित्य मानते हैं ।
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15 भावार्थ - दीपक से प्राकाश तक सभी वस्तुओं का सम-स्वभाव है । सभी वस्तु पदार्थ नित्यानित्यस्वभावी हैं। संसार की कोई भी वस्तु पदार्थ स्याद्वाद सिद्धान्त को मर्यादा का उल्लंघन नहीं करती; किन्तु वैशेषिकादि दर्शनानुयायी हठवादपूर्वक, हे जिनेश्वर विभो ! आपकी स्याद्वादवारणी के विद्वेषी होकर दीपक आदि को सर्वथा अनित्य तथा प्रकाश आदि को सर्वथा नित्य स्वीकार करते हैं । यह वस्तुतः उनका विद्वेषभावात्मक प्रलाप ही है ।