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स्याद्वादबोधिनी-३६
(२) ईश्वर एक है - वैशेषिक मान्यता है कि ईश्वर एक है, अनेक ईश्वर होने पर जगत् में एकरूपता तथा क्रमता नहीं हो सकती ।
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जैनमान्यता के अनुसार- यह मान्यता, एकान्तरूप से सत्य नहीं है क्योंकि शहद के छत्ते आदि पदार्थों को अनेक मधुमक्खियाँ बनाती हैं, तथापि छत्ते में क्रमिकता एवं एकरूपता दृष्टिगोचर होती है ।
( ३ ) ईश्वर सर्वव्यापी सर्वज्ञ है - यह वैशेषिक मान्यता भी श्रीजैनमतानुसार समीचीन नहीं है, क्योंकि ईश्वर के सर्वव्यापी होने पर प्रमेय पदार्थों के लिए कोई स्थान न रह सकेगा । ईश्वर का सर्वज्ञत्व भी किसी प्रमाण से सिद्ध नहीं हो सकता, क्योंकि स्वयं सर्वज्ञत्व प्राप्त किये बिना हम प्रत्यक्ष से ईश्वर का साक्षात् ( प्रत्यक्ष ) नहीं कर सकते । अनुमान से भी हम ईश्वर को नहीं जान सकते क्योंकि वह दूर है । अतः सर्वज्ञत्व से सम्बद्ध किसी हेतु द्वारा उसका ज्ञान नहीं हो सकता । 'सर्वज्ञत्व' के बिना विश्व जगत् की विचित्र संरचना सम्भव नहीं हो सकती । इस प्रर्थापत्तिप्रमाण से भी ईश्वर का सर्वज्ञत्व सिद्ध नहीं हो सकता, क्योंकि विश्व जगत् की विचित्रता की व्याप्ति सर्वज्ञत्व के साथ नहीं है ।