Book Title: Syadwad Bodhini
Author(s): Jinottamvijay Gani
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

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Page 193
________________ स्याद्वादबोधिनी-१७२ पदार्थ को अनित्य कहते हैं । अनित्य पात्मा ने पुण्योपार्जन किया, करने वाले आत्मा का निरन्वय विनाश होने के कारण फल रूप सुख का अनुभव तथा पाप का उपार्जन करने वाली क्रिया करने वाले आत्मा का निरन्वय विनाश होने के कारण दुःख का अनुभव घटित नहीं हो सकता। साथ ही पदार्थों का निरन्वय विनाश मानने पर एक को कर्ता तथा अन्य को भोक्ता स्वीकार करना पड़ेगा। इस क्षणिकवादी (अनित्यवादी) के मत में अर्थक्रियाकारित्वक अभाव में पुण्य-पाप की सिद्धि भी सम्भव नहीं है। क्योंकि, इनके मत में पदार्थ मात्र एक क्षण विद्यमान रहता है। निरन्तर विनाश के कारण बन्ध-मोक्ष की व्यवस्था भी सम्भव नहीं है। अतः सभी को आत्मा को परिणामी स्वीकार करना चाहिए। प्रात्मा को परिणामी मानने पर कोई बाधा नहीं पाती है। परिणाम न तो सर्वथा अवस्थानरूप होता है न सर्वथा विनाश रूप । पातञ्जल टीका में कहा है कि-'अवस्थित द्रव्य में पहले धर्म का विनाश होने पर दूसरे धर्म की उत्पत्ति को परिणाम कहते हैं।' (अवस्थितस्य द्रव्यस्य पूर्वधर्मनिवृत्तौ धर्मान्तरोत्पत्तिः परिणामः । पा० सू० ३-१३)

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