Book Title: Syadwad Bodhini
Author(s): Jinottamvijay Gani
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

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Page 228
________________ स्याद्वादबोधिनी-२०७ अन्धकार में डुबो रखा है। अतः आप ही इस दुःखित जगत् का उद्धार कर सकते हैं। क्योंकि आपके स्याद्वाद सम्पृक्तवचन विसंवाद से सर्वथा रहित हैं। हे विश्व-जगत् के त्राणकर्ता ! जो लोग आपके चरणारविन्द की सेवा में लीन हैं, वे कृतार्थ हैं और उनकी सेवा-पूजा सार्थक है। 9 भावार्थ-इदमिति । प्रत्यक्षरूप से, निकट ही दृश्यमान यह विश्व-जगत् मायिकों (मदारी जैसी क्रिया में चञ्चल/व्यामोहित करने वालों) के द्वारा तत्त्व और अतत्त्व के अभेद से भयावह अन्धकार पूर्ण बना दिया गया है। अर्थात्-जैसे जादूगर, लोगों की (दर्शकों की) बुद्धि को भ्रान्त कर देते हैं, ठीक उसी प्रकार कुतर्कवादों से वेदान्तादि दर्शनों के द्वारा भी तत्त्व और प्रतत्त्व के प्रभेद से विश्व-जगत् को मायाजाल में फंसा दिया है । हे जिनेश्वर देवाधिदेव ! आपके वचनामृत विसंवाद से सर्वथा रहित हैं। क्योंकि, विसंवादपूर्ण वे वचन होते हैं, जिन्हें कष, छेद, ताप रूप परीक्षाओं के बिना ही प्रयोग में लाया जाता है। वह विसंवाद परवादियों के मत में दृष्टिगोचर होता है; आपके द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त में नहीं। क्योंकि, आपके वचन परीक्षात्रय के

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