Book Title: Syadwad Bodhini
Author(s): Jinottamvijay Gani
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

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Page 216
________________ स्याद्वादबोधिनी - १९५ जितने जीव व्यवहार राशि से मोक्ष जाते हैं, उतने ही जीव अनादि वनस्पति की राशि से निकलकर व्यवहार राशि में आ जाते हैं ।' अतएव यह संसार कभी जीवों से रिक्त नहीं होता है । भव्य और अभव्य के भेद से भी श्री जैन आगमों में जीवों को दो भागों में विभक्त करके विमर्शपूर्वक कहा है कि- जो मोक्षगामी जीव हैं, वे भव्य तथा जो अनन्तकाल बीतने पर भी मोक्ष नहीं प्राप्त कर सकते, वे प्रभव्य कहलाते हैं । अतः भव्य जीवों के मोक्ष के पश्चात् भी संसारोच्छेदापत्ति दोष उपस्थित नहीं हो सकता है । जीवानन्त्यवाद के सर्वथा निर्दोष होने के कारण यह सर्वमान्य होना चाहिए । सर्वज्ञविभु देवाधिदेव श्री जिनेश्वर अरिहन्त भगवान की त्रिकालाबाध्य अद्वितीय वाणी में तो लेशमात्र भी सन्देह या किसी प्रकार के दोष की सम्भावना ही नहीं है, क्योंकि वे यथार्थ द्रष्टा और यथार्थ वक्ता हैं ।। २७ ।। [ ३० ] परस्परमसूयावन्तोऽन्ये दार्शनिकाः समग्रनयस्वरूपत्वाद् भगवतोऽरिहन्तस्य सिद्धान्तमाविष्करोतीति कृत्वा प्राह विवदन्तोऽक्षतः मात्सर्य र हितं

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