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स्याद्वादबोधिनी-७८
कलिकालसर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्रसूरीश्वर जी महाराज कथंचित् सामान्य तथा कथंचित् विशेष रूप वाच्य-वाचक भाव का समर्थन करके प्रतिवादियों द्वारा मान्य एकान्त सामान्य (जाति), एकान्त विशेष रूप वाच्य-वाचक भाव का खण्डन करते हुए उनका प्रतिभा प्रमाद प्रदर्शित करते हैं
- भाषानुवाद -
* श्लोकार्थ-जिस प्रकार समस्त पदार्थ (वाच्य) अनेक होकर भी पदार्थपने से एक हैं और एक होकर भी अनेक हैं, उसी प्रकार उन पदार्थों के वाचकशब्द, शब्दपने एक होकर भी अनेक और अनेक होकर भी एक हैं । इससे भिन्न वाच्य-वाचक विषयक कल्पना आपको न मानने वाले प्रतिवादियों की बुद्धि का दिवालियापन ही है।
9 भावार्थ-कलिकालसर्वज्ञ प्राचार्यप्रवरश्री ने इस श्लोक के माध्यम से प्रत्येक वस्तु को सामान्य-विशेष और एक-अनेक प्रतिपादित करते हुए सामान्य एकान्तवादी, विशेष एकान्तवादी, तथा परस्पर भिन्न निरपेक्ष सामान्यविशेष वादियों पर विचार-विमर्श किया है ।