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स्याद्वादबोधिनी-८२ अब कलिकालसर्वज्ञ प्राचार्यमहाराजश्री सांख्यमत में अन्तविरोध की स्थिति प्रदर्शित करते हुए उनके मत का खण्डन करते हैं
- भाषानुवाद - * श्लोकार्थ-चैतन्य रहित बुद्धि जड़ है। शब्द आदि पञ्च तन्मात्राओं से आकाश, पृथिवी, जल, अग्नि, वायु उत्पन्न होते हैं; पुरुष का न बन्ध होता है और न उसका मोक्ष होता है। सांख्यदार्शनिकों की ऐसी परस्पर . विरुद्ध प्ररूपणायें हैं।
बुध् अवगमने धातु से 'स्त्रियाम् क्तिन्' से क्तिन् प्रत्यय करके बुद्धि शब्द की निष्पत्ति होती है। वह बुद्धि कदापि ज्ञानशून्य जड़ नहीं होती, अपितु सत्-असत् विवेक शक्ति सम्पन्न होती है। जन्य जगत कर्मजन्य है न कि तन्मात्रा से समुद्भूत । बन्ध और मोक्ष दोनों जीव के होते हैं, अन्य के नहीं। जो कर्मों से बँधता है वही विशेष प्रयत्नों से मुक्त भी होता है। बन्ध तथा मोक्ष एकाधिकरणवृत्ति होते हैं। अपराध के कारण तस्कर आदि का बन्धन नियत काल के लिए होता है तथा उन्हें ही सजा समाप्ति के पश्चात् मुक्त किया जाता है, दूसरों को नहीं। इसके विपरीत सांख्यदर्शन की