________________
स्याद्वादबोधिनी - ८५
बन्ध, मोक्ष प्रकृति का ही होता है; पुरुष का नहीं । पुरुष तो चेतन, निर्लेप, शुद्ध तथा निष्क्रिय है ।
श्रीजैन सिद्धान्त के अनुसार सांख्यमत पर विचारविमर्श करने से ज्ञात होता है कि चेतन शक्ति को ज्ञान से शून्य कहना यह परस्पर विरुद्ध है । यदि चेतन शक्ति 'स्व' व 'पर' का ज्ञान करने में समर्थ नहीं है तो उसे चेतन कैसे कहा जा सकता है ? अमूर्त चेतन शक्ति का बुद्धि में प्रतिबिम्ब पड़ना सम्भव नहीं है, क्योंकि मूर्त्त पदार्थ का ही प्रतिबिम्ब पड़ता है । चेतन शक्ति को परिणामी और कर्त्ता माने बिना बुद्धि में परिवर्तन सम्भव नहीं है । प्रकृति अचेतन है तथा पुरुष चेतन है, इसलिए बन्ध पुरुष का ही मानना चाहिए । प्रकृति यानी स्वभावतः प्रकृतिजन्य है तो चेतन पुरुष का सांख्यमत में मोक्ष सम्भव नहीं होगा । क्योंकि प्रकृति अपने परिवर्तन रूपी स्वभाव से विरत नहीं हो सकती । यद्यपि नहीं तथा पंगु बन्धन का उदाहरण देकर सांख्यकारिका में उसे सिद्ध करने का प्रयत्न प्रयास किया गया है, तथापि वह समीचीन नहीं है । अतएव कलिकालसर्वज्ञ आचार्य महाराजश्री ने सांख्यमत की इस परिकल्पना को जड़परिकल्पना मानते हुए उस प्रकार से खण्डन किया है ।। १५ ।।