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स्याद्वादबोधिनी - ९१
बौद्ध सिद्धान्तवादी कहते हैं कि प्रमाण और प्रमाण का फल एकान्त रूप से ( सर्वथा ) अभिन्न है । दिङ्नाग विरचित न्यायप्रवेश में उन्होंने कहा भी है कि, "जो ज्ञान प्रमिति और अनुमति का कारण होता है, वही ज्ञान दोनों में प्रमाण फलस्वरूप है, क्योंकि ज्ञान अधिगम रूप है । प्रत्यक्ष और अनुमान प्रमाण में प्रत्यक्षरूप और अनुमान रूप ज्ञान ही फलरूप ( कार्यरूप ) है क्योंकि वह अधिगम रूप-परिच्छेद-रूप है
पदार्थों को जानने की क्रिया के अतिरिक्त ज्ञान का कोई दूसरा फल नहीं है, क्योंकि परिच्छेद का अधिकरण और परिच्छेद से भिन्न ज्ञान के फल का अधिकरण भिन्नभिन्न होते हैं ।
श्रतः प्रत्यक्ष श्रौर अनुमान प्रमाण का फल प्रत्यक्ष और अनुमानरूप ज्ञान से सर्वथा भिन्न नहीं होता । बौद्धों का उक्त कथन समीचीन नहीं है ।
यह सर्वविदित है कि, जो एकान्तरूप से प्रभिन्न होता है, उसकी उत्पत्ति साथ होती है । यथा - घट श्रौर घटत्व । जबकि बौद्धों का कहना है कि कार्य और कारण एक काल में ही उत्पन्न होते हैं । कार्य और कारण भिन्नाधिकरणवृत्ति नहीं हो सकते हैं ।