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स्याद्वादबोधिनी-२५
इसी सन्दर्भ में पूर्वधर वाचकप्रवर श्रीउमास्वाति महाराज विरचित श्रीतत्त्वार्थाधिगम सूत्र में स्पष्ट रूप से कहा है कि-'उत्पाद-व्ययध्रौव्ययुक्त सत्' । अर्थात्-'जो उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य (ध्र वता) से युक्त है, वह सत् पदार्थ है ।' इसीलिए प्रत्येक वस्तु-पदार्थ में अनेक नित्य, अनित्यात्मक आदि स्वभाव समरूप से विद्यमान हैं। ऐसी स्थिति में स्याद्वाद सिद्धान्त का लेशमात्र भी क्वचिदपि उल्लंघन नहीं होता। नीतिज्ञ सुशासक की आज्ञा का पालन जैसे-अनुल्लंघनीय होता है, ठीक उसी प्रकार नीतिराज स्याद्वाद-सिद्धान्त की कहीं भी अवहेलना, किसी वस्तुपदार्थ के स्वभाव में दृष्टिगोचर नहीं होती है। वैशेषिक दर्शनानुयायी जो एकान्त नित्यत्व, एकान्त अनित्यत्व की बात करते हैं, वह तत्त्वार्थ को न जानने के कारण उनका वृथा प्रलापमात्र है।
उक्त बात का रहस्य यह है कि-पर्याय के बिना द्रव्य अथवा द्रव्यरहित पर्याय कहीं भी किसी ने नहीं देखी है । द्रव्यरहित पर्याय तथा पर्यायरहित द्रव्य की स्थिति सम्भव नहीं है। श्रीजनदार्शनिक वैशेषिकों के सर्वथा नित्यत्व लक्षण को स्वीकार नहीं करते ।
. वैशेषिकों के अनुसार 'जिसमें उत्पत्ति विनाश न हो, तथा जो सर्वदा सम हो, वह नित्य है।' जैनदार्शनिकों