Book Title: Swayambhustotra
Author(s): Vijay K Jain
Publisher: Vikalp

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Page 30
________________ Lord Rsabhanātha प्रजापतिर्यः प्रथमं जिजीविषूः शशास कृष्यादिषु कर्मसु प्रजाः । प्रबुद्धतत्त्वः पुनरद्भुतोदयो ममत्वतो निर्विविदे विदांवरः ॥ (1-2-2) सामान्यार्थ - प्रथम तीर्थङ्कर श्री ऋषभदेव प्रजा के स्वामी थे। उन्होंने तत्त्वज्ञानी होने के कारण कर्मभूमि के प्रारम्भ में जीने की इच्छा रखने वाली प्रजा को खेती आदि आजीविका के उपायों के करने की शिक्षा दी। फिर त्यागने (हेय) व ग्रहण करने योग्य (उपादेय) तत्त्वों को जानने वाले होने के कारण, इन्द्र आदि के द्वारा रची हुई आश्चर्यकारी विभूति को प्राप्त होते हुए भी, सब प्रकार के ममत्व से विरक्त हो गये थे; ऐसे श्री ऋषभदेव भगवान् श्रेष्ठ ज्ञानी हुए थे। The first Tīrthankara, Lord Rşabha Deva was the Lord of the world. As the Bharata region, due to the passage of time, was turning from the land of glorious abundance and enjoyment (bhogabhūmi) to the land of action (karmabhūmi), he taught the people the means of livelihood, like cultivation. Later on, although endowed with immense splendour, having acquired the true knowledge of the reality of substances, souls and nonsouls, he renounced all attachment to worldly objects. विहाय यः सागरवारिवाससं वधूमिवेमां वसुधाव● सतीम् । मुमुक्षुरिक्ष्वाकुकुलादिरात्मवान् प्रभुः प्रवव्राज सहिष्णुरच्युतः ॥ (1-3-3)

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