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Svayambhūstotra
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श्री अरिष्टनेमि ( श्री नेमिनाथ ) जिन
भगवानृषिः परमयोगदहनहुतकल्मषेन्धनः । ज्ञानविपुलकिरणैः सकलं प्रतिबुध्य बुद्धकमलायतेक्षणः ॥
Lord Aristanemi
(Lord Neminatha)
हरिवंशकेतुरनवद्यविनयदमतीर्थनायकः । शीलजलधिरभवो विभवस्त्वमरिष्टनेमिजिनकुञ्जरोऽजरः ॥
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(22-1-121)
(22-2-122)
सामान्यार्थ हे परम ऐश्वर्यवान्, इन्द्रादि से पूज्य ! परम ऋद्धिधारी जिन्होंने उत्तम शुक्लध्यान रूपी अग्नि से घातिया कर्म रूपी ईंधन को जला डाला था, जिनके नेत्र विकसित कमल के समान विशाल थे, हरिवंश के प्रधान, निर्दोष विनय और इन्द्रिय-विजय रूप धर्मतीर्थ के नायक, शील के समुद्र, तथा जरा-रहित, ऐसे आप श्री अरिष्टनेमि जिन तीर्थङ्कर केवलज्ञान की विस्तृत किरणों के द्वारा लोकालोक को प्रकाशित कर संसार से मुक्त हुए थे।
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O Worshipful Lord! Endowed with supreme accomplishments, you had burnt the karmic fuel with the help of pure