Book Title: Swayambhustotra
Author(s): Vijay K Jain
Publisher: Vikalp

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Page 177
________________ Svayambhūstotra Great sages whose hearts were established in self-attainment, equipped with excellent intellect and resonating with your incantation had worshipped the duo of your feet. Your feet were kissed by the multitude of rays emanating from the pearls and jewels in the diadems of the lords of the devas, and were spotless with soles pink like a cluster of blooming lotuses and toes looking marvellous with the glow of the moon-like nails. द्युतिमद्रथाङ्गरविबिम्बकिरणजटिलांशुमण्डलः । नीलजलदजलराशिवपुः सह बन्धुभिर्गरुडकेतुरीश्वरः ॥ (22-5-125) हलभृच्च ते स्वजनभक्तिमुदितहृदयौ जनेश्वरौ । धर्मविनयरसिकौ सुतरां चरणारविन्दयुगलं प्रणेमतुः ॥ (22-6-126) सामान्यार्थ - जिनके शरीर का प्रभामण्डल उनके कान्तिमान सुदर्शनचक्र रूप सूर्य-बिम्ब की किरणों से व्याप्त हुआ था, जिनका शरीर नील मेघ के समान अथवा समद्रवत् नील रंग का था व जिनकी ध्वजा गरुड़ के चिह्न से युक्त थी, ऐसे तीन खण्ड के स्वामी श्रीकृष्ण महाराज, तथा हल नामक शस्त्र के धारी बलदेव - इन दोनों लोकनायक भाईयों ने, जिनके चित्त आत्मबन्धु की भक्ति से प्रसन्न हो रहे थे, जो लोक के स्वामी थे तथा जो धर्म की विनय के प्रेमी थे, अन्य बन्धुओं के साथ, हे श्री नेमिनाथ ! आपके दोनों चरण-कमलों को बार-बार प्रणाम किया था। 152

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