Book Title: Swayambhustotra
Author(s): Vijay K Jain
Publisher: Vikalp

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Page 183
________________ Svayambhūstotra 23 श्री पार्श्वनाथ जिन Lord Pārsvanātha तमालनीलैः सधनुस्तडिद्गुणैः प्रकीर्णभीमाशनिवायुवृष्टिभिः । बलाहकैर्वैरिवशैरुपद्रुतो महामना यो न चचाल योगतः ॥ (23-1-131) सामान्यार्थ - जो उत्कृष्ट धैर्यवान श्री पार्श्वनाथ भगवान् पूर्व-भव वैरी कमठ के द्वारा तमाल वृक्ष के समान नीलवर्ण युक्त, इन्द्रधनुषों सम्बन्धी बिजली-रूपी डोरियों से सहित, भयंकर वज्रपात, आँधी व जलवृष्टि बिखरने वाले ऐसे शत्रु के वशीभूत मेघों के द्वारा उपसर्ग किये जाने पर भी परम शुक्लध्यान से चलायमान नहीं हुए थे। Even after being tormented by the most destructive, enemycontrolled, thunderclouds which were blue as the skin of the Tamāla tree, discharging rainbow-like strings of lightning, terrible thunderbolts, strong winds, and torrential rain, highminded Lord Pārsvanātha did not deviate from his pure meditation (śukladhyāna). बृहत्फणामण्डलमण्डपेन यं स्फुरत्तडित्पिङ्गरुचोपसर्गिणम् । जुगूह नागो धरणो धराधरं विरागसंध्यातडिदम्बुदो यथा ॥ (23-2-132) 158

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