Book Title: Swayambhustotra
Author(s): Vijay K Jain
Publisher: Vikalp

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Page 178
________________ Lord Ariṣṭanemi O Lord! Whose body was bathed in the brilliant light emanating from his divine discus (Sudarśana cakra), whose complexion was dark like the clouds and the sea-water, who ruled the three divisions of the land, and whose flag depicted the majestic bird Garuda (garuda), such śrikrisna, and Balarāma, the possessor of the weapon that resembled a plough, both the lords of the men, along with their other brothers, taking delight in the devotion to their kin and rejoicing reverence to the virtuous, had, over and over again, worshipped the pair of your lotus-feet. ककुदं भुवः खचरयोषिदुषितशिखरैरलङ्कृतः । मेघपटलपरिवीततटस्तव लक्षणानि लिखितानि वज्रिणा ॥ (22-7-127) वहतीति तीर्थमृषिभिश्च सततमभिगम्यतेऽद्य च । प्रीतिविततहृदयैः परितो भृशमूर्जयन्त इति विश्रुतोऽचलः ॥ (22-8-128) सामान्यार्थ - जैसे बैल के कंधे का अग्रभाग शोभता है वैसे ही यह पर्वत पृथ्वी का उच्च अग्रभाग - रूप शोभता है, विद्याधरों की स्त्रियों से सेवित शिखरों से यह पर्वत शोभायमान है, इस पर्वत के तट मेघ- पटलों से घिरे रहते हैं, इन्द्र ने आपके इस मोक्ष-स्थल पर जो चिह्न उकेरे हैं उनको धारण करने वाला है - इससे यह तीर्थ है। जो आपके लिए चित्त में भक्ति रखने वाले साधुओं के द्वारा आज भी निरन्तर सेवन किया जाता है, ऐसा यह ऊर्जयन्त या गिरनार पर्वत जगत् में तीर्थ माना गया है। यह पर्वत आपके मोक्ष का स्थान होने के कारण अतिशय करके लोक में प्रसिद्ध हो गया। 153

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