Book Title: Swayambhustotra
Author(s): Vijay K Jain
Publisher: Vikalp

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Page 169
________________ Svayambhūstotra 21 श्री नमिनाथ जिन Lord Naminātha स्तुतिः स्तोतुः साधोः कुशलपरिणामाय स तदा भवेन्मा वा स्तुत्यः फलमपि ततस्तस्य च सतः । किमेवं स्वाधीन्याज्जगति सुलभे श्रायसपथे स्तुयान्न त्वां विद्वान्सततमभिपूज्यं नमिजिनम् ॥ (21-1-116) सामान्यार्थ - जिनेन्द्र भगवान् की स्तुति भव्य पुरुष, पुण्य-साधक (स्तोता) के शुभ परिणाम के लिए होती है। चाहे उस समय स्तुत्य (स्तुति का आराध्य देव) विद्यमान हो या न हो, और चाहे स्तुति करने वाले भव्य पुरुष (स्तोता) को स्तुत्य के द्वारा स्वर्गादि फल की प्राप्ति होती हो या न होती हो। इस प्रकार जगत् में स्वाधीनता से कल्याण-मार्ग के सुलभ होने पर कौन विवेकी पुरुष है जो सर्वदा इन्द्रादि के द्वारा पूज्य श्री नमिनाथ जिनेन्द्र की स्तुति न करे? The worship of Lord Jina must result in propitious outcomes for the worthy and noble worshipper, whether or not the Lord being worshipped is present (with reference to time and space) and whether or not the worshipper is bestowed with boons (like heavenly abode) by the Lord. Even after the availability of such a 144

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