________________
Lord Munisuvratanatha
सामान्यार्थ - हे कामदेव के मद को जीतने वाले जिनेन्द्र ! आपके शरीर की आभा तरुण मोर के कण्ठ के सदृश नील रंग की थी व तप के द्वारा उत्पन्न हुई चारों ओर फैलने वाली उसकी परम शोभा पूर्ण चन्द्रमा की दीप्ति के समान थी।
O Conqueror of Desires and Pride, Lord Munisuvratanatha! The hue of your bodily lustre was like the neck of a young peacock*. As a result of severe austerities, your body had acquired the splendour of luminous halo that encircles the full moon.
*refers to the blue neck of a young peacock.
शशिरुचिशुचिशुक्ललोहितं सुरभितरं विरजो निजं वपुः । तव शिवमतिविस्मयं यते यदपि च वाङ्मनसीयमीहितम् ॥
(20-3-113) सामान्यार्थ - हे यतिराज ! आपका शरीर चन्द्रमा की दीप्ति के समान निर्मल, सफेद रुधिर से युक्त, अत्यन्त सुगन्धित, मल रहित, शिवस्वरूप सुन्दर व शान्त तथा अति आश्चर्य को उपजाने वाला था । ऐसी ही शुभ व आश्चर्यकारक प्रवृत्ति आपके वचन तथा मन की थी।
O Supreme Sage! Your body had the soothing lustre of the rays of the moon and the blood in it was bright and pure white. Free from all waste matter, it had the most gratifying fragrance; all undertakings of your speech and mind too were auspicious and amazing.
139