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Lord Śreyānsanātha
reference to itself and another. Example: Somehow (in some respect or in certain context) the pitcher certainly is, is not, and is indescribable also - syādasti nāsti cāvaktavyasca ghataḥ
This seven-fold mode of predications (saptabhangī) with its partly meant and partly non-meant affirmation (vidhi) and negation (nisedha), qualified with the word 'syāt' (literally, in some respect; indicative of conditionality of predication) dispels any contradictions that can occur in thought. The student of metaphysics in Jainism is advised to mentally insert the word ‘syāt before every statement of fact that he comes across, to warn him that it has been made from one particular point of view, which he must ascertain.
दृष्टान्तसिद्धावुभयोर्विवादे साध्यं प्रसिद्ध्येन्न तु तादृगस्ति । यत्सर्वथैकान्तनियामि दृष्टं त्वदीयदृष्टिविभवत्यशेषे ॥
(11-4-54) सामान्यार्थ - वादी तथा प्रतिवादी दोनों के बीच विवाद होने पर दृष्टान्त का निर्णय हो जाने पर साध्य की सिद्धि हो जाती है। अर्थात् जब दृष्टान्त वादी तथा प्रतिवादी दोनों को मान्य होता है तब वादी जिसे सिद्ध करना चाहता है उसे प्रतिवादी मान लेता है। जिनका मत सर्वथा एकान्त-रूप ही वस्तु को मानने वाला है उनके मत में तो दृष्टान्त-भूत कोई वस्तु दृष्टिगोचर नहीं है। उनको दृष्टान्त समर्थन नहीं कर सकेगा। परन्तु आपका अनेकान्त मत सर्व ही (साध्य, साधन एवं दृष्टान्त) में अपना प्रभाव डाले हुए है।
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