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Svayambhūstotra सर्व धर्मों को एक साथ जानने वाला है वह अनेकान्त अनेक धर्म स्वरूप है व विवक्षित नय की अपेक्षा से वह अनेकान्त एकान्त स्वरूप है।
O Lord! Your doctrine of manifold points of view (anekāntavāda), based on the instrumentalities of either the comprehensive knowledge (pramāņa) or the standpoint (naya), is itself manifold. When pramāņa is under consideration it exhibits the manifold (anekānta) perspective and when a particular naya (a subdivision of pramāņa) is under consideration it exhibits the absolutistic (ekānta) perspective.
इति निरुपमयुक्तशासनः प्रियहितयोगगुणानुशासनः । अर जिन दमतीर्थनायकस्त्वमिव सतां प्रतिबोधनाय कः ॥
(18-19-104) सामान्यार्थ - हे अर जिनेन्द्र ! इस तरह आपका मत उपमा-रहित, निर्बाध प्रमाण की युक्तियों से सिद्ध है तथा वह मत सुखदाई व हितकारी मन, वचन, काय की क्रिया का व सम्यग्दर्शनादि गुणों का उपदेश करने वाला है। आप इन्द्रिय-विजय को सूचित करने वाले धर्मतीर्थ के स्वामी हैं। आपके समान और कौन है जो विद्वज्जनों को यथार्थ ज्ञान दे सकता है?
O Lord Ara Jina! Your commandments are incomparable and supremely righteous. You are the preceptor of pleasing and favourable activities (yoga) and virtues. You are the Supreme Promulgator of the path to liberation. Who else, other than you, is capable of enlightening the potential souls?
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